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भारत के लिए कृषि का क्या महत्त्व है ? |
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Answer» कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था का मूल आधार है। आज भी भारत की दो-तिह्मई जनसंख्या की आजीविका का आधार कृषि ही है। भारतीय कृषि में खाद्यान्न फसलों की प्रधानता रहती है तथा अधिकांश उत्पादन घरेलू खपत के लिए होता है। वर्तमान समय में किये गये विभिन्न प्रयासों के द्वारा भारतीय कृषि अपने निर्वाहमूलक स्वरूप को छोड़कर व्यापारिक स्वरूप में बदलती जा रही है। |
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यातायात अथवा परिवहन के साधनों का उल्लेख कीजिए।याभारत में उपलब्ध परिवहन सेवाओं के नाम लिखिए तथा उनमें से किसी एक के विकास की विवेचना कीजिए।यापरिवहन सेवाओं के तीनों भागों का वर्णन कीजिए। |
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Answer» यातायात (परिवहन) के साधन यातायात के साधनों से अभिप्राय उन साधनों से है जो लोगों, वस्तुओं, डाक आदि को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाते हैं। मोटे तौर पर यातायात के साधनों को निम्नलिखित तीन वर्गों में बाँटा जा सकता है 1. थल यातायात – रेल यातायात तथा सड़क यातायात। (i) सड़क यातायात – सड़क यातायात का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण साधन है। सड़कों पर कार, मोटर, टूक, रिक्शे, ताँगे, ठेले, पशु आदि के द्वारा लोगों तथा सामान को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचाया जाता है। सड़कें गाँवों, कस्बों तथा नगरों को एक-दूसरे से जोड़ती हैं। निर्माण की दृष्टि से सड़कें दो प्रकार की होती हैं-कच्ची सड़कें तथा पक्की सड़कें। प्रबन्ध की दृष्टि से पक्की सड़कों को भारत में पाँच वर्गों में बाँटा जाता है— (1) राष्ट्रीय राजमार्ग, (2) प्रान्तीय राजमार्ग, (3) जिला सड़कें, (4) ग्रामीण सड़कें तथा (5) सीमा सड़कें। देश में सड़कों की कुल लम्बाई लगभग 33 लाख किमी है। (ii) रेल यातायात – आन्तरिक परिवहन की दृष्टि से भारतीय अर्थव्यवस्था में रेलों का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान है। भारत के रेल यातायात का एशिया महाद्वीप में प्रथम तथा विश्व में चौथा स्थान है। भारतीय रेलमार्गों की लम्बाई लगभग 63,221 किलोमीटर है। देश में प्रतिदिन लगभग 7,116 स्टेशनों के बीच 13 हजार गाड़ियाँ चलती हैं तथा लगभग 14.5 लाख किलोमीटर की दूरी तय . करती हैं। भारतीय रेल व्यवस्था में 16 लाख लोग लगे हुए हैं। कुशल प्रबन्ध हेतु भारत में रेल यातायात को 16 प्रशासनिक मण्डलों में विभाजित किया गया है। इस प्रतिष्ठान में सरकार की लगभग १ 9,000 करोड़ की पूंजी लगी हुई है। 2. जल यातायात – जलमार्गों के अनुसार जल यातायात को दो भागों में बाँटा जाता है—(i) आन्तरिक जल यातायात तथा (ii) समुद्री यातायात। देश के भीतरी भागों में नदियाँ तथा नहरें आन्तरिक जल परिवहन का मुख्य साधन हैं। गंगा, यमुना, घाघरा, ब्रह्मपुत्र आदि समतल मैदानों में धीमी गति से बहने वाली नदियाँ नावें तथा स्टीमर चलाने के लिए उपयुक्त हैं। इसी प्रकार पश्चिम बंगाल की नहरें तथा ओडिशा की तटीय नहरें आन्तरिक यातायात के लिए उपयोगी हैं। समुद्री यातायात का भारत में प्राचीन काल से ही महत्त्व रहा है। भारतीय जलयाने समुद्री मार्ग से दूर स्थित देशों को माल ले जाते हैं तथा वहाँ से ढोकर लाते हैं। समुद्री यातायात की सुविधा हेतु देश में बारह बड़े बन्दरगाह हैं, जिनमें छ: पूर्वी तट पर तथा छ: पश्चिमी तट पर हैं। 3. वायु यातायात – इसे मुख्य रूप से निम्नलिखित भागों में विभाजित किया गया है– (1) इण्डियन एयरलाइन्स निगम – यह निगम देश के आन्तरिक भागों तथा समीपवर्ती देशों पाकिस्तान, म्यांमार, नेपाल, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, मालदीव एवं श्रीलंका के साथ वायुमार्गों की व्यवस्था करता है। इस निगम का प्रधान कार्यालय नयी दिल्ली में है। वायुदूत-20 जनवरी, 1981 ई० से वायुदूत नामक निगम स्थापित किया गया। बाद में 1992-93 ई० में वायुदूत का विलय इण्डियन एयरलाइन्स (वर्तमान में इंडियन) में कर दिया गया। (ii) एयर इण्डिया निगम – यह निगम विदेशों के लिए वायुमार्गों की व्यवस्था करता है तथा लगभग 97 देशों के साथ भारत का सम्बन्ध स्थापित करता है। इस निगम द्वारा संचालित 4 प्रमुख वायुमार्ग हैं—(1) मुम्बई-काहिरा-रोम-जेनेवा-पेरिस-लन्दन। (2) दिल्ली-अमृतसर-काबुल-मास्को।(3) कोलकाता-सिंगापुर-सिडनी–पर्थ।(4) मुम्बई-काहिरा-रोम-डसेलडर्फ-लन्दन-न्यूयॉर्क। (iii) इसके पश्चात् पवन हंस लिमिटेड की स्थापना 15 अक्टूबर, 1985 ई० में हुई, जो दुर्गम क्षेत्रों में हेलीकॉप्टरों की सेवाएँ उपलब्ध कराता है। इसके अतिरिक्त देश में निजी वायु सेवाएँ भी संचालित हो रही हैं। लगभग 41 निजी एयर लाइनें एयर टैक्सी और घरेलू वायुयानों से घरेलू हवाई यातायात के 42 प्रतिशत भाग को संचालित कर रहे हैं। वर्तमान में भारत में पाँच अन्तर्राष्ट्रीय तथा बीस से अधिक राष्ट्रीय हवाई अड्डे हैं। |
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रेलों के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।यारेल परिवहन के किन्हीं तीन आर्थिक लाभों का वर्णन कीजिए।यादेश के आर्थिक विकास में रेलों का क्या महत्त्व है ?याभारत के आर्थिक विकास में रेलमार्गों के तीन महत्त्व पर प्रकाश डालिए। |
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Answer» देश में परिवहन के साधनों में रेलों का महत्त्व निम्नलिखित तथ्यों से स्पष्ट होता है
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भारत में प्रति हेक्टेयर उत्पादन कम होने के क्या कारण हैं ? कृषि उत्पादन को बढ़ाने के उपाय लिखिए।याभारतीय कृषि में निम्न उत्पादकता के किन्हीं तीन कारणों पर प्रकाश डालिए तथा इसकी उत्पादकता बढ़ाने हेतु कोई दो महत्त्वपूर्ण सुझाव दीजिए।याभारतीय कृषि की उत्पादकता बढ़ाने हेतु दो सुझाव (उपाय) दीजिए।याभारत में कृषि के पिछड़ेपन के लिए उत्तरदायी किन्हीं दो कारणों का उल्लेख कीजिए।याभारतीय कृषि की निम्न उत्पादकता बढ़ाने के लिए चार सुझाव दीजिए।याभारत में कृषि की न्यून उत्पादकता के पाँच कारणों का उल्लेख कीजिए। याकृषि के उत्पादन में वृद्धि करने के लिए किन्हीं दो महत्त्वपूर्ण उपायों को लिखिए।याभारतीय कृषि की निम्न उत्पादकता के किन्हीं तीन कारणों का उल्लेख कीजिए तथा उत्पादकता वृद्धि के लिए तीन सुझाव दीजिए। |
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Answer» प्रति हेक्टेयर उत्पादन कम होने के कारण भारत एक कृषिप्रधान देश है। देश की लगभग 72% जनसंख्या अपनी जीविका के लिए कृषि पर आश्रित है। भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान होने के बावजूद यह पिछड़ी हुई अवस्था में है। अन्य देशों की तुलना में भारत में प्रति हेक्टेयर-कृषि-उत्पादन बहुत कम है। इसके लिए मुख्यतया निम्नलिखित कारण उत्तरदायी हैं| 1. कृषि जोतों का छोटा होना – भारत में कृषि जोतों का आकार बहुत छोटा है। लगभग 51 प्रतिशत जोतों का आकार एक हेक्टेयर से भी कम है। फिर कृषि जोत बिखरी हुई अवस्था में एक-दूसरे से। दूर-दूर हैं। छोटी जोतों पर वैज्ञानिक ढंग से खेती करना सम्भव नहीं होता तथा न ही सिंचाई की समुचित व्यवस्था हो पाती है। 2. कृषिकावर्षा पर निर्भर होना – आज भी भारतीय कृषि का लगभग 80% भाग वर्षा पर निर्भर करता है। वर्षा की अनिश्चितता एवं अनियमितता के कारण भारतीय कृषि ‘मानसून का जूआ’ कहलाती है। देश के कुछ क्षेत्रों में अतिवृष्टि तथा बाढ़ों के कारण फसलें नष्ट हो जाती हैं। 3. भूमि पर जनसंख्याको अत्यधिक भार – जनसंख्या में तीव्र वृद्धि के कारण भूमि पर जनसंख्या का भार निरन्तर बढ़ता गया है। परिणामतः प्रति व्यक्ति उपलब्ध भूमि का क्षेत्रफल घटता गया है, साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में अदृश्य बेरोजगारी तथा अल्प रोजगार की समस्याएँ बढ़ी हैं और किसानों की गरीबी तथा ऋणग्रस्तता में वृद्धि हुई है। 4. सिंचाई सुविधाओं का अभाव – भारत में सिंचित क्षेत्र केवल 33.14% है। असिंचित क्षेत्रों में किसान अपनी भूमि में एक ही फसल उगा पाते हैं, जिस कारण भारतीय कृषि की उत्पादकता कम है। 5. प्राचीन कृषि-यन्त्र – पाश्चात्य देशों में कृषि के आधुनिक यन्त्रों का प्रयोग किया जाता है, जब कि भारत के अनेक क्षेत्रों में आज भी हल, पटेला, दराँती, कस्सी आदि अत्यधिक प्राचीन यन्त्रों द्वारा कृषि की जाती है, जिस कारण भारतीय कृषि की उत्पादकता कम है। 6. दोषपूर्ण भूमि-व्यवस्था – भारत में अनेक वर्षों तक देश की लगभग 40% भूमि जमींदार, जागीरदार आदि मध्यस्थों के पास रही। किसान इन मध्यस्थों के काश्तकार होते थे। स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद इन मध्यस्थों के उन्मूलन से भी छोटे किसानों की दशा में विशेष सुधार नहीं हो पाया। आज भी ऐसे असंख्य किसान हैं, जो दूसरों की भूमि पर खेती करते हैं। 7, कृषकों की अशिक्षा तथा निर्धनता – निर्धनता के कारण देश के कृषक आधुनिक यन्त्र, उत्तम बीज, खाद आदि खरीदने तथा उनका प्रयोग करने में असमर्थ हैं। शिक्षा के अभाव के कारण वे आधुनिक कृषि-विधियों का भी प्रयोग नहीं कर पाते। भारत में अधिक उपज देने वाले उन्नत बीजों की भी कमी है। वित्तीय सुविधाओं के अभाव के कारण किसान अपना समय, शक्ति तथा धन कृषि की उन्नति में नहीं लगा पाते। 8. फसलों के रोग – फसले-सम्बन्धी विभिन्न रोगों की समुचित रोकथाम न हो पाने के कारण भी भारतीय कृषि की उत्पादकता कम है। प्रत्येक वर्ष कीटाणु तथा जंगली पशु-पक्षी करोड़ों रुपये की फसलों को नष्ट कर देते हैं। 9. अन्य कारण – भूमि कटाव, जलाधिक्य, नाइट्रोजन की कमी आदि के कारण भी भारतीय कृषि की उत्पादकता कम है। कृषि-उत्पादन बढ़ाने के उपाय भारत में कृषि-उत्पादन बढ़ाने के लिए निम्नलिखित उपाय किये जाने चाहिए 1. जनसंख्या में तीव्र वृद्धि पर नियन्त्रण – भूमि पर जनसंख्या के अत्यधिक भार को कम करने तथा कृषि जोतों के उपविभाजन तथा विखण्डन को रोकने के लिए देश की जनसंख्या में तीव्र गति से होने वाली वृद्धि को प्रभावी ढंग से नियन्त्रित करना आवश्यक है। 2. सिंचाई सुविधाओं का विकास – गाँवों में कुएँ, ट्यूबवेल, नहरों आदि का समुचित प्रबन्ध करके सिंचाई-सुविधाओं का विकास तथा विस्तार किंया जा सकता है। 3. उन्नत बीजों व खाद की समुचित व्यवस्था – सरकारी बीज-गोदामों की स्थापना करके कृषकों को उचित मूल्य पर उन्नत बीज दिये जाने चाहिए। रासायनिक खाद के उत्पादन में वृद्धि करके उसे किसानों को उचित मूल्य पर गाँवों में ही उपलब्ध कराना चाहिए। 4. फसलों की रक्षा – जंगली पशुओं, कीटाणुओं तथा रोगों से कृषि-उपजों का बचाव किया जाना चाहिए। बचाव के उपायों का गाँवों में प्रदर्शन और प्रचार होना चाहिए तथा कीटाणुनाशक दवाइयाँ उचित मूल्य पर गाँवों में ही उपलब्धं करायी जानी चाहिए। 5. भूमि संरक्षण – वृक्षारोपण, बाँध, मेड़ आदि उपायों द्वारा भूमि का संरक्षण किया जाना चाहिए तथा किसानों को इसके लाभ-हानि से अवगत कराना चाहिए। 6. आधुनिक कृषि – यन्त्रों का प्रबन्ध-खेती के पुराने ढंग के औजारों की हानियाँ बतलाकर किसानों को आधुनिक कृषि-यन्त्रों का प्रयोग समझाना चाहिए और इनको उचित कीमतों पर गाँवों में ही उपलब्ध कराया जाना चाहिए। 7. छोटे तथा बिखरे खेतों का एकीकरण – चकबन्दी की सहायता से छोटे व बिखरे खेतों का एकीकरण करके अनार्थिक जोतों को आर्थिक जोतों में बदला जा सकता है। सहकारी खेती को अपनाकर भी खेतों के आकार को बड़ा करके बड़े पैमाने पर खेती की जा सकती है तथा कृषि उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है। 8. साख-सुविधाओं का विस्तार – किसानों को कम ब्याज पर उत्तम बीज, रासायनिक खाद, आधुनिक यन्त्र आदि खरीदने के लिए पर्याप्त मात्रा में ऋण मिलने चाहिए। इसके लिए सहकारी साख समितियों का विकास किया जाना चाहिए। भूमि विकास बैंकों तथा क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की अधिक संख्या में स्थापना की जानी चाहिए तथा प्राकृतिक विपत्तियों के समय सरकार द्वारा किसानों को अधिक सहायता दी जानी चाहिए। 9. शिक्षा का प्रसार – किसानों में शिक्षा का प्रसार करके कृषि सम्बन्धी विभिन्न समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। शिक्षा के प्रसार से किसानों को आधुनिक कृषि-यन्त्रों तथा नयी उत्पादन- विधियों का ज्ञान कराया जा सकता है। |
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नकदी या व्यापारिक फसलों के तीन उदाहरण दीजिए। |
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Answer» कपास, जूट तथा गन्ना भारत की प्रमुख नकदी या व्यापारिक फसलें हैं। |
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रेशेदार फसलों के तीन उदाहरण दीजिए। |
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Answer» कपास, जूट, नारियल प्रमुख रेशेदार फसलें हैं। |
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खरीफ की तीन मुख्य फसलों के नाम लिखिए। |
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Answer» चावल, कपास तथा जूट खरीफ की मुख्य फसलें हैं। |
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रबी की तीन मुख्य फसलों के नाम लिखिए।यारबी की प्रमुख फसलें कौन-कौन सी हैं ? |
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Answer» गेहूँ, जौ, मटर, सरसो, अलसी, मसूर तथा चना रबी की मुख्य फसलें हैं। ये फसलें अक्टूबर तथा नवम्बर में बोयी जाती हैं। |
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कृषि का भारतीय अर्थव्यवस्था में क्या महत्त्व है ?याभारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि के किन्हीं दो योगदानों का विवरण दीजिए। |
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Answer» भारत एक कृषिप्रधान देश है। कृषि इसकी अर्थव्यवस्था की मूल आधार रही है, क्योंकि
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संचार अथवा सन्देशवाहन के मुख्य साधनों का उल्लेख करते हुए भारतीय अर्थव्यवस्था पर इनके प्रभावों का उल्लेख कीजिए।याआर्थिक विकास में संचार के प्रमुख साधनों का उल्लेख कीजिए तथा उनके महत्त्व पर प्रकाश डालिए।याभारत के मुख्य संचार साधनों का उल्लेख कीजिए।यासंचार के माध्यमों में रेडियो तथा दूरदर्शन की उपयोगिता लिखिए।याभारतीय अर्थव्यवस्था पर परिवहन के साधनों के प्रभाव का उल्लेख कीजिए।यापरिवहन तथा संचार के विभिन्न साधनों को किसी राष्ट्र तथा उसकी अर्थव्यवस्था की जीवन-रेखाएँ क्यों कहा जाता है ?याविश्व में भारत के बदलते स्तर का वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों में कीजिए(i) परिवहन तथा (ii) दूरसंचार।यासंचार सेवाओं का अर्थ, प्रकार तथा महत्त्व बताइए। |
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Answer» भारत में संचार (सन्देशवाहन) के मुख्य साधन सन्देशवाहन के साधनों से अभिप्राय उन साधनों से है जिनके द्वारा हम कम समय में एक स्थान से दूसरे स्थान पर सूचना भेजते हैं। भारत के मुख्य सन्देशवाहन के साधन निम्नलिखित हैं| 2. तार सेवाएँ – भारत में तार सेवा लगभग 142 वर्ष पुरानी है। देश के लगभग सभी नगरों तथा कस्बों में तारघरों की व्यवस्था कर दी गयी है। भारत में तारघर डाक विभाग के अन्तर्गत आते हैं। इस समय देश में 62,000 तारघर हैं। अब अंग्रेजी के अतिरिक्त हिन्दी तथा क्षेत्रीय भाषाओं में भी तार भेजे जाने लगे हैं। 3. विदेशी तार (केबिलग्राम) – इसके अन्तर्गत तार की मोटी-मोटी लाइनें समुद्र के अन्दर बिछाई जाती हैं। फिर ऐसे बिछे हुए तारों द्वारा विदेशों को समाचार भेजे जाते हैं। 4. बेतार का तार – इस साधन द्वारा समाचार भेजने के लिए न तो भूमि पर तार के खम्भे गाड़ने पड़ते हैं। और ने समुद्र में तार बिछाने पड़ते हैं। इसके अन्तर्गत ट्रांजिस्टर जैसे वायरलेस यन्त्र की सहायता से वायु द्वारा ही समाचार भेज दिया जाता है। 5. टेलीफोन – टेलीफोन की सहायता से आप न केवल अपने देश के व्यक्तियों वरन् अन्य राष्ट्रों में रह . रहे व्यक्तियों से भी बातचीत कर सकते हैं। इस समय देश में लगभग 17 हजार टेलीफोन एक्सचेंज हैं। देश के 886 नगरों में एस०टी०डी० की सुविधा प्रदान की गयी है, जिसके अन्तर्गत सीधे डायल घुमाकर अन्य शहरों के व्यक्तियों से बातचीत की जा सकती है। विश्व के 178 देशों के साथ प्रत्यक्ष टेलीफोन सम्बन्ध स्थापित कर दिये गये हैं। वर्तमान में देश में फिक्स्ड लाइनें तथा सेल्युलर (मोबाइल) लाइनें एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ लगा रही हैं, जिसमें मोबाइल फोन सेवाएँ फिक्स्ड लाइन सेवाओं से बहुत आगे हैं। 6. रेडियो – रेडियो व ट्रांजिस्टर की सहायता से घर बैठे ही विश्वव्यापी घटनाओं का पता लग जाता है। व्यावसायिक विज्ञापन, आवश्यक घोषणाएँ, मनोरंजन के साधन आदि के रूप में इसका प्रयोग किया जाता है। इसका केन्द्रीय कार्यालय नयी दिल्ली में है, जिसे ‘आकाशवाणी’ के नाम से जाना जाता है। वर्तमान में देश की 99% जनसंख्या तक इसकी पहुँच हो गयी है। रेडियो मनोरंजन का सस्ता और उत्तम साधन भी है। 7. टेलीविजन या दूरदर्शन – भारत में टेलीविजन सेवा का प्रारम्भ 15 सितम्बर, 1959 ई० को नयी दिल्ली में किया गया था। अब देश में दूरदर्शन केन्द्रों का जाल बिछा दिया गया है। प्रमुख शहरों में दूरदर्शन प्रसारण केन्द्र स्थापित किये गये हैं। राष्ट्रीय महत्त्व के प्रसारण उपग्रह संचार व्यवस्था द्वारा समस्त देश में एक साथ प्रसारित किये जाते हैं। यह राष्ट्रीय एकीकरण का एक सशक्त माध्यम है। दूरदर्शन के देश में 900 से अधिक ट्रांसमीटर हैं तथा 90% जनसंख्या तक इसकी पहुँच भी हो चुकी है। 8. टेलेक्स सेवा – राष्ट्रीय टेलेक्स सेवा सन् 1963 में प्रारम्भ की गयी थी। अब देश में लगभग 332 टेलेक्स एक्सचेंज कार्य कर रहे हैं। इनके द्वारा टेलीप्रिंटर की सहायता से मुद्रित सन्देशों का आदान-प्रदान किया जाता है। इस व्यवस्था द्वारा विदेशों को भी सन्देशों का आदान-प्रदान सम्भव है। 9. विदेश संचार सेवा – भारत की अन्य देशों के साथ दूर-संचार सेवाएँ, समुद्र पार संचार सेवा (O.C.S.) नामक कार्यालय द्वारा संचालित होती हैं, जिसके मुम्बई, कोलकाता, चेन्नई तथा नयी दिल्ली में चार केन्द्र हैं। इसके अन्तर्गत उपग्रह के माध्यम से विदेशी तार, टेलेक्स, टेलीफोन, रेडियो, फोटो आदि की सुविधाएँ प्राप्त होती हैं। सन् 1971 में पूना के निकट आर्वी तथा सन् 1976 में देहरादून में स्थापित दो उपग्रह भूकेन्द्रों की सहायता से ओ०सी०एस० कार्यालय हिन्द महासागर में स्थित इण्टेलसेट के माध्यम से विदेश संचार सेवाएँ प्रदान करता है। 10. ई-मेल – इस साधन ने संचार-व्यवस्था को उन्नति की चरम सीमा पर पहुंचा दिया है। अब संसार के किसी भी कोने से, किसी भी कोने में सन्देश भेजा जा सकता है। आपकी अनुपस्थिति में भी आपको भेजा गया सन्देश स्वीकृत हो जाता है। इस समाचार को आप पढ़ सकते हैं और आवश्यक कार्यवाही कर सकते हैं। 11. मुद्रण माध्यम – समाचार-पत्र तथा अन्य पत्र-पत्रिकाएँ जो दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक एवं मासिक रूप से प्रकाशित की जाती हैं, प्रमुख मुद्रण-संचार माध्यम हैं। प्रेस रजिस्ट्रार द्वारा जारी सन् 2001 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में विभिन्न भाषाओं में 52,000 से भी अधिक समाचार-पत्र एवं पत्रिकाओं का प्रकाशन किया जा रहा था। ये देश की जनता, सरकार, व्यापार व उद्योग के बीच विचारों व सन्देशों के आदान-प्रदान के प्रभावी माध्यम हैं। महत्त्व संचार के साधनों का महत्त्व निम्नलिखित है
भारतीय अर्थव्यवस्था पर परिवहन तथा संचार-साधनों का प्रभाव परिवहन के प्रमुख साधन सड़कें, रेलमार्ग, वायुमार्ग तथा जलमार्ग हैं। ये साधन किसी भी राष्ट्र की धमनियाँ होते हैं। देश का आर्थिक तथा सामाजिक विकास इन्हीं साधनों पर निर्भर करता है। परिवहन तथा संचार के साधन राष्ट्र में एक ऐसा संगठन खड़ा कर देते हैं, जो लोगों की गतिशीलता, माल का परिवहन तथा समाचारों के आदान-प्रदान में सहायक हों। यदि कृषि एवं उद्योग-धन्धे किसी राष्ट्र के आर्थिक विकास में शरीर एवं हड्डियों की भाँति कार्य करते हैं तो परिवहन एवं संचार के साधन धमनियों तथा शिराओं की भाँति कार्य करते हैं। परिवहन एवं संचार-प्रणाली के ठप हो जाने से अर्थव्यवस्था मृतप्राय हो जाती है। इसीलिए इन्हें राष्ट्र की अर्थव्यवस्था की जीवन-रेखाएँ कहा जाता है। राष्ट्र की अर्थव्यवस्था में परिवहन तथा संचार के साधनों की भूमिका (प्रभाव) तथा महत्त्व निम्नलिखित हैं 1. आधुनिक औद्योगिक विकास के लिए परिवहन तथा संचार के साधन पहली आवश्यकता बन गये हैं। ये कच्चे माल को कारखानों तक तथा उनके द्वारा निर्मित माल को उपभोक्ताओं तक पहुँचाने का कार्य करते हैं। 2. सड़कें, रेलें, जलमार्ग तथा वायुमार्ग परिवहन के विभिन्न साधन हैं, जब कि डाक-तार, रेडियो, टेलीविजन, दूरभाष, कृत्रिम उपग्रह आदि संचार के विभिन्न साधन हैं, जिन्होंने भावनात्मक एकता को बनाये रखकर देश में आर्थिक विकास की गति को बढ़ाया है। 3. परिवहन तथा संचार के साधन वस्तुओं के उत्पादन एवं वितरण में सहायक हैं। इनसे लोगों की गतिशीलता में वृद्धि होती है, जिससे वे अधिक धनोपार्जन कर सकते हैं तथा उन्हें भावनात्मक सन्तोष प्राप्त होता है। 4. परिवहन और संचार के द्रुतगामी एवं सूक्ष्म साधनों द्वारा आज पूरा संसार सिमटकर रह गया है। वह एक घर-परिवार की भाँति है, क्योंकि जब चाहें घर बैठे ही एक-दूसरे से बात कर सकते हैं अथवा कुछ ही घण्टों के अन्तराल में परस्पर मिल सकते हैं। 5. इन साधनों के द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय बाजारों में हुए परिवर्तनों की जानकारी तुरन्त प्राप्त की जा सकती है। अत: लोगों की आपसी निर्भरता दिनों-दिन बढ़ती ही जा रही है। 6. परिवहन एवं संचार के साधनों द्वारा देश की अर्थव्यवस्था सुदृढ़ हुई है, जिससे जीवन सुख-सुविधाओं से सम्पन्न और समृद्ध हो गया है। 7. ये साधन देश के आर्थिक जीवन को एकता के सूत्र में बाँधे हुए हैं तथा युद्ध, अकाल व महामारियों के समय अपनी सेवाओं के द्वारा इन आपदाओं से छुटकारा दिलाने में सहायक सिद्ध हुए हैं। 8. राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से देश की अर्थव्यवस्था सुदृढ़ हुई है तथा आर्थिक विकास की गति में भी तीव्रता आयी है।। इस प्रकार उपर्युक्त आधार पर कहा जा सकता है कि परिवहन तथा संचार के विभिन्न साधने राष्ट्र एवं उसकी अर्थव्यवस्था की जीवन-रेखाएँ हैं। |
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भारतीय फसलों में विविधता पाए जाने के क्या कारण हैं? |
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Answer» भारत विविध प्रकार की फसलों के उत्पादन में पूरी तरह समर्थ है, जिसके लिए निम्नलिखित कारण उत्तरदायी रहे हैं 1.भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 51% भाग कृषि योग्य है। यह कृषि योग्य क्षेत्रफल उत्तर का विशाल मैदान, तटीय मैदान, नदी-घाटियाँ एवं डेल्टाई प्रदेश हैं। 2.भारतीय कृषि ‘मानसून का जुआ’ कहलाती है। अत: बढ़ते हुए मानसून तथा लौटते हुए मानसूनों द्वारा फसलें भी विविध प्रकार की पैदा की जाती हैं। 3.देश में वर्ष भर फसलों की बुवाई या बोने का समय रहता है अर्थात् कभी भी फसल बोई जा सकती है। फलस्वरूप विविध प्रकार की फसलें उगाई जाती हैं। 4.भारत में कृषि फसलों के उत्पादन में मृदा (मिट्टी) की प्रमुख भूमिका रहती है। देश में मिट्टियों की । विभिन्नता पाई जाने के कारण फसलों में भी विविधता पाई जाती है। 5.देश में जलवायु दशाओं की विभिन्नता के कारण फसलों के उत्पादन में भी विविधता पाई जाती है। |
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भारतीय कृषि में शुष्क कृषि का विकास क्यों अनिवार्य है? |
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Answer» आज भी भारतीय कृषि मानसूनी वर्षा पर निर्भर करती है तथा मानसून का जुआ’ कहलाती है। यद्यपि देश में सिंचाई साधनों का पर्याप्त विकास हो चुका है तो भी सम्पूर्ण प्रयासों के बाद भी सिंचित क्षेत्रफल मात्र 35.7% ही हो पाया है। भारत में कृषि योग्य भूमि के मात्र 10% क्षेत्रफल में ही पर्याप्त वर्षा होती है तथा 30% भागों में सामान्य से बहुत-ही कम वर्षा होती है। भारत में कम वर्षा वाले अधिकांश क्षेत्रों में सिंचाई द्वारा जल आज भी प्राप्त नहीं होता है। अतः ऐसे क्षेत्रों में शुष्क कृषि का विकास किया जाना अति आवश्यक है। ‘शुष्क कृषि, कृषि की एक ऐसी पद्धति है, जिसमें भूमि की नमी को बनाए रखा जाता है तथा फसलों को भी सूखने नहीं दिया जाता है। इसके लिए वर्षा से पूर्व खेतों को जोत लिया जाता है तथा उनकी मेड़बन्दी कर दी जाती है। खेतों की जुताई भी समोच्च (समान ऊँचाई) विधि से की जानी चाहिए। ऐसा करने से वर्षा का जल बह नहीं सकेगा तथा मिट्टी उस जल को पर्याप्त मात्रा में सोख लेगी। खेतों में जुताई-बुवाई के पश्चात् पटेला (भूमि को समतल बना देना) देना चाहिए, जिससे मिट्टी से वाष्पन क्रिया न हो सके। |
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जनसंख्या-वृद्धि पर नियन्त्रण का सर्वोत्तम उपाय क्या है?(क) परिवार नियोजन(ख) औद्योगिक विकास(ग) शिक्षा का प्रसार(घ) गरीबी उन्मूलन |
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Answer» सही विकल्प है (क) परिवार नियोजन |
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[2001] की जनगणना के अनुसार भारत में लिंगानुपात है(क) 970(ख) 890(ग) 940(घ) 933 |
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Answer» सही विकल्प है (घ) 933 |
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निम्नलिखित में से कौन-सा राज्य सबसे घना बसा है?(क) केरल(ख) पश्चिम बंगाल(ग) महाराष्ट्र(घ) बिहार |
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Answer» सही विकल्प है (ख) पश्चिम बंगाल |
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निम्नलिखित में से किस राज्य में जनसंख्या घनत्व न्यूनतम पाया जाता है?(क) केरल(ख) आन्ध्र प्रदेश(ग) राजस्थान(घ) बिहार |
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Answer» सही विकल्प है (ग) राजस्थान |
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1951 के पश्चात् भारत में जनसंख्या-वृद्धि की प्रवृत्ति का वर्णन कीजिए तथा वृद्धि का प्रमुख कारण भी लिखिए। |
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Answer» सन् 1951 के पश्चात् भारत में जनसंख्या की वृद्धि तेज गति से हुई है। यहाँ सन् 1951 ई० में 36.1 करोड़ जनसंख्या निवास कर रही थी जो सन् 2011 ई० में बढ़कर 121.02 करोड़ हो गई। सन् 2001-2011 की अवधि में वार्षिक जनसंख्या-वृद्धि की औसत दर 1.90% रही है। जनसंख्या में इस तेज वृद्धि दर का प्रमुख कारण जन्म-दर और मृत्यु-दर एवं मृत्यु-दर के अन्तराल में वृद्धि का होना है। देश में मृत्यु-दर में हुई भारी कमी के कारण जन्म-दर एवं मृत्य-दर के बीच का अन्तर बहुत बढ़ गया है, जिसके कारण जनसंख्या में तेज गति से वृद्धि हुई है। |
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भारत में विरल जनसंख्या वाले क्षेत्र कौन-कौन-से हैं ? उनके विरल होने के कारणों पर प्रकाश डालिए। |
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Answer» भारत में विरल जनसंख्या वाले क्षेत्र तथा उनके विरल होने के कारण निम्नलिखित हैं 1. उत्तरी पर्वतीय प्रदेश – विरल जनसंख्या का यह क्षेत्र उत्तर-पश्चिम में जम्मू-कश्मीर राज्य से लेकर हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, सिक्किम तथा अरुणाचल प्रदेश तक फैला हुआ है। इसकी विरल जनसंख्या के कारण -पर्वतीय भूमि, ऊबड़-खाबड़ धरातल, मिट्टी की पतली परत के कारण कृषि-योग्य भूमि का अभाव तथा जलवायु का मानव के रहने के प्रतिकूल होना। 2. सघन वर्षा वाला उत्तर – पूर्वी प्रदेश–इस प्रदेश के अन्तर्गत नागालैण्ड, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा एवं मेघालय राज्य आते हैं। इसकी विरल जनसंख्या के कारण हैं-अत्यधिक वर्षा के कारण सदाबहार वनों का सघन आवरण, अनुपजाऊ लैटेराइट मिट्टी तथा सघन वनों के कारण कृषि, उद्योग, परिवहन तथा आजीविका के साधनों की कमी। 3. पश्चिमी राजस्थान – विरल जनसंख्या के कारण हैं-वर्षा की अत्यन्त कमी, कृषि एवं आजीविका साधनों का अभाव। 4. प्रायद्वीपीय पठार का वृष्टिछाया प्रदेश एवं कच्छ का रन – विरल जनसंख्या के कारण हैं—प्रायद्वीपीय पठार के वृष्टिछाया प्रदेश में वर्षा की कमी के कारण खाद्यान्नों की कम पैदावार, क्षारीय मिट्टी वाला एवं दलदली क्षेत्र कच्छ का रन। |
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भारत में जनसंख्या नियन्त्रण हेतु किये गये उपायों का वर्णन कीजिए।याभारत में बढ़ती जनसंख्या नियन्त्रण के कोई छः उपाय सुझाइए।याभारत में जनसंख्या नियन्त्रण के तीन उपाय बताइए।याजनसंख्या वृद्धि नियन्त्रण पर टिप्पणी लिखिए।याभारत में जनसंख्या नियन्त्रण हेतु चार उपाय सुझाइए।याभारत में बढ़ती हुई जनसंख्या के किन्हीं तीन प्रभावों की विवेचना कीजिए। |
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Answer» जनसंख्या-वृद्धि कों नियन्त्रित करने के उपाय। भारत में जनसंख्या-वृद्धि को रोकने के निम्नलिखित उपाय किये जा सकते हैं 1. विवाह की आयु में वृद्धि करना – भारत में युवक-युवतियों के विवाह छोटी आयु में करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। दोनों के पूर्ण वयस्क हो जाने पर विवाह करने की छूट होनी चाहिए। विवाह जितनी अधिक आयु में किया जाएगा, बच्चे भी उतने ही कम उत्पन्न होंगे। अधिक आयु में विवाह करने के कारण युवतियाँ शिक्षा प्राप्त करेंगी या फिर उनकी रुचि सांस्कृतिक एवं सामाजिक कार्यों के प्रति आकर्षित होगी। अभी भारत में विवाह की आयु 21 वर्ष और 18 वर्ष निश्चित है। इसे कम-से-कम पाँच वर्ष और बढ़ाया जाना चाहिए। 2. उत्पादन में वृद्धि करना – आर्थिक उत्पादन में वृद्धि करने से मानव की रुचि एवं भौतिक समृद्धि में वृद्धि के साथ-साथ रहन-सहन के स्तर में भी वृद्धि होती है। भारत के कृषि उत्पादन में वृद्धि होने की अभी पर्याप्त सम्भावनाएँ विद्यमान हैं। अत: यदि देश में प्रति एकड़ उपज बढ़ा ली जाती है तो उससे बढ़ती हुई जनसंख्या की खाद्यान्न आवश्यकता की पूर्ति की जा सकती है। 3. औद्योगीकरण का विकास – पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से देश में उद्योग-धन्धों का विकास किया जा रहा है। इससे बढ़ती हुई जनसंख्या को आजीविका के साधन प्राप्त होंगे तथा आर्थिक स्थिति भी सुधरेगी। इसके साथ-साथ परिवहन, संचार, व्यापार आदि कार्यों में भी विकास होगा। 4. शिक्षा का प्रचार एवं प्रसार – शिक्षा के प्रचार एवं प्रसार द्वारा विज्ञान एवं तकनीकी के अधिकाधिक प्रयोग से मानव का जीवन-स्तर उच्च हो सकेगा तथा शिक्षित जनसंख्या की मनोवृत्ति भी जनसंख्या-वृद्धि की ओर कम होगी। 5. परिवार-नियोजन एवं जन्म – दर पर नियन्त्रण – जनसंख्या वृद्धि का स्थायी समाधान तो परिवार नियोजन एवं जन्म-दर पर नियन्त्रण करना है। नसबन्दी, बन्ध्याकरण एवं गर्भनिरोधक गोलियों एवं औषधियों का प्रयोग इस दिशा में अधिक कारगर है। इन विधियों के प्रचार-प्रसार द्वारा भी जन्म-दर पर नियन्त्रण पाया जा सकता है और जनसंख्या वृद्धि को रोकने का स्थायी समाधान खोजा जा सकता उपर्युक्त उपायों के अतिरिक्त देश में गरीबी को नियन्त्रित करके, लड़के-लड़कियों में समानता के व्यवहार द्वारा, सरकारी नीति और सन्तति सुधार कार्यक्रमों को लागू करके, स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार और सामाजिक सुरक्षा के विकास द्वारा भी जनसंख्या-वृद्धि को कुछ हद तक नियन्त्रित किया जा सकता है। |
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स्वतन्त्रता के बाद कृषि की उन्नति के लिए किये गये सरकार के प्रयासों का वर्णन कीजिए।याभारतीय कृषि की दशा सुधारने के लिए केन्द्र तथा राज्य सरकारों द्वारा किये गये किन्हीं पाँच मुख्य उपायों का उल्लेख कीजिए।याभारत में कृषि के विकास के लिए सरकार द्वारा किये गये कोई दो कार्य लिखिए। |
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Answer» स्वतन्त्रता के पश्चात् सरकार ने भारतीय कृषि को सुधारने के लिए अनेक उपाय किये हैं। इनमें प्रमुख उपाय निम्नलिखित हैं 1. जमींदारी-प्रथा का अन्त – जमींदारी-प्रथा भारतीय किसानों के लिए एक बड़ा अभिशाप थी। भारत सरकार ने इस व्यवस्था को समाप्त करके भूमि के समस्त अधिकार वास्तविक किसानों को दे दिये। कृषित भूमि के उचित वितरण को सुनिश्चित करने के लिए भूमि सम्पत्ति सीमा कानून’ भी लागू किया , गया। 2. चकबन्दी – सम्पत्ति उत्तराधिकार कानून के अनुसार कृषित भूमि के बँटवारे के कारण किसानों के जोत प्रायः बिखरे हुए होते थे, जो आर्थिक रूप से अनुपयोगी होते थे। अतएव सरकार ने ऐसे बिखरे खेतों की सीमाएँ पुनः निर्धारित करने हेतु चकबन्दी व्यवस्था की तथा किसानों में उन्हें बाँट दिया। 3. सिंचाई सुविधाओं का विकास – भारतीय कृषि ‘मानसून का जुआ’ कहलाती है। मानसून की अनिश्चित प्रकृति से किसानों को बचाने के लिए सरकार ने सिंचाई की अनेक परियोजनाओं का विकास किया है। 4. उन्नत बीजों का वितरण – सरकार ने अधिक उपज देने वाली उन्नत किस्म के बीजों का विकास करने के लिए अनेक कृषि विश्वविद्यालय, शोध-संस्थान तथा प्रदर्शन फार्म स्थापित किये हैं। 5. पौध संरक्षण के लिए कीट – रोगनाशकों का प्रयोग – अनेक प्रकार के कृषि-रोगों, कीटों तथा टिड्डी दलों के निवारण के लिए रोग तथा कीटनाशकों को किसानों में बाँटने की व्यवस्था की है। 6. रासायनिक उर्वरकों का वितरण – सरकार ने रासायनिक उर्वरकों के उत्पादन के लिए अनेक संयन्त्र (कारखाने) स्थापित किये हैं। इन उर्वरकों को सस्ते मूल्य पर किसानों को उपलब्ध कराया। जाता है। 7. कृषि का आधुनिकीकरण – कृषि के आधुनिकीकरण के लिए नये उपकरण तथा यन्त्र विकसित किये गये हैं। बड़े (समृद्ध) किसान इनका व्यापक रूप से प्रयोग करते हैं। इसके अतिरिक्त अनेक प्रकार की प्रौद्योगिकी; जैसे—शुष्क कृषि, बहुशास्य कृषि, अन्त:कृषि, फसलों का हेर-फेर इत्यादि विकसित की गयी हैं। इससे कृषि की उत्पादकता तथा उर्वरता में वृद्धि हुई है। 8. सहकारी सोसायटी तथा बैंकों का विकास – सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों में बहुउद्देशीय सहकारी समितियों तथा बैंकों की स्थापना की है, जिससे किसानों का कल्याण हो तथा उन्हें वित्तीय सहायता उपलब्ध हो सके। 9. फसल बीमा योजनाएँ – किसानों को प्राकृतिक संकटों से उबारने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में अनेक प्रकार की फसल बीमा योजनाएँ चालू की गयी हैं। 10. समर्थन मूल्य – किसानों को ऋणदाताओं तथा दलालों द्वारा शोषण से बचाने के लिए कृषि मूल्य आयोग प्रति वर्ष विविध फसलों के लिए समर्थन मूल्य की घोषणा करता है। भारतीय खाद्य निगम किसानों से सीधे खाद्यान्न खरीदता है। यद्यपि भारतीय कृषि की दशा सुधारने के लिए केन्द्र तथा राज्य सरकारों द्वारा अनेकानेक प्रयास किये गये हैं, तथापि ये सभी प्रयास उस स्तर तक सहायक नहीं हुए हैं कि भारतीय कृषि की स्थिति में पर्याप्त सुधार आ सके। उन्नत कृषि प्रौद्योगिकी के स्तर को पाने के लिए इसमें और भी सुधार किये जाने चाहिए। |
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कृषि की प्रमुख समस्या का वर्णन कीजिए। |
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Answer» भारतीय कृषि की सबसे बड़ी समस्या प्रति हेक्टेयर निम्न (कम) उत्पादकता की है। |
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पीली क्रान्ति किससे सम्बन्धित है ? |
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Answer» ‘पीली क्रान्ति’ तिलहनों के उत्पादन से सम्बन्धित है। इसके अन्तर्गत तिलहन उत्पादन कार्यक्रम 23 राज्यों के 337 जिलों में प्रारम्भ किया गया है। |
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‘श्वेत क्रान्ति’ या ‘ऑपरेशन फ्लड क्या है और इसका क्या महत्त्व है ?या‘ऑपरेशन फ्लड’ का क्या तात्पर्य है? उसके दो लाभ बताइए।या‘ऑपरेशन फ्लड’ का क्या तात्पर्य है? इसके दो महत्त्वों का उल्लेख कीजिए।या‘ऑपरेशन फ्लड से आप क्या समझते हैं? भारतीय ग्रामीण विकास में इसके किन्हीं योगदान का वर्णन कीजिए। |
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Answer» ‘ऑपरेशन फ्लड’ या ‘श्वेत क्रान्ति’ से तात्पर्य दुग्ध-उत्पादन में आशातीत प्रगति से है। समेकित ग्रामीण विकास का यह एक प्रमुख अंग है। इस कार्यक्रम के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं
तीव्र गति से जनसंख्या में वृद्धि तथा नगरीय जनसंख्या की बढ़ती आवश्यकता को देखते हुए दुग्ध उत्पादन में और अधिक वृद्धि होनी चाहिए। इसके लिए ‘ऑपरेशन फ्लड’ कार्यक्रम को भारत के प्रत्येक राज्य में तीव्र गति से चलाना आवश्यक है। देश में ‘श्वेत क्रान्ति’ के विस्तार की आवश्यकता को निम्नलिखित रूप में स्पष्ट किया जा सकता है
ग्रामीण विकास में इसके योगदान अथवा महत्त्व निम्नलिखित हैं
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निम्नलिखित में से किसके निर्माण एवं रख-रखाव का उत्तरदायित्व केन्द्र सरकार के अधीन है?(क) राष्ट्रीय राजमार्ग(ख) प्रादेशिक राजमार्ग(ग) जिलामार्ग(घ) ग्रामीण सड़कें |
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Answer» सही विकल्प है (क) राष्ट्रीय राजमार्ग |
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निम्नलिखित में से उस विकल्प को खोजिए जो जन-संचार का माध्यम नहीं है(क) रेडियो(ख) दूरदर्शन(ग) वायु परिवहन(घ) टेलेक्स |
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Answer» सही विकल्प है (ग) वायु परिवहन |
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भारत का सबसे लम्बा राष्ट्रीय राजमार्ग है(क) एन० एच० 7(ख) एन० एच० 1(ग) एन० एच० 32(घ) एन० एच० 8 |
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Answer» सही विकल्प है (क) एन० एच० 7 |
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असम (असोम) चाय की खेती के लिए प्रसिद्ध है, क्यों ? |
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Answer» असोम राज्य का चाय के उत्पादन में प्रथम स्थान है। यहाँ देश की 50% से अधिक चाय का उत्पादन किया जाता है। यह राज्य भारत में चाय उत्पादन के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है। इसके निम्नलिखित कारण हैं
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भारत में जनसंख्या की समस्या पर एक भौगोलिक निबन्ध लिखिए। याभारत में जनसंख्या की समस्याओं का वर्णन कीजिए तथा जनसंख्या नियन्त्रण के लिए उपाय सुझाइए। याभारत में जनसंख्या-वृद्धि के उत्तरदायी कारकों की विवेचना कीजिए।याभारत में जनसंख्या-वृद्धि के कारणों पर प्रकाश डालते हुए इससे उत्पन्न समस्याओं के निराकरण हेतु सुझाव दीजिए। याभारत में जनसंख्या की समस्याओं की विवेचना कीजिए तथा उनके समाधान के उपायों को सुझाइए।याभारत में जनसंख्या की समस्याओं का वर्णन कीजिए। |
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Answer» भारत में जनसंख्या-वृद्धि के कारण भारत में सन् 1991 की जनगणना के अनुसार 84.63 करोड़ व्यक्ति निवास कर रहे थे। यह जनसंख्या सन् 2011 की जनगणनानुसार 121.02 करोड़ हो गयी है। देश में जनसंख्या वृद्धि की दर 1971 से 1981 के बीच 24.66% थी, जबकि सन् 1981 से 1991 के दशक में 23.87% थी। सन् 2001-2011 के बीच 17.64% जनसंख्या-वृद्धि अंकित की गयी है। पिछले 80 वर्षों के अन्तराल में जनसंख्या तीन गुनी से भी अधिक हो गयी है। इस अतिशय जनसंख्या वृद्धि के निम्नलिखित कारण हैं – ⦁ उष्ण जलवायु – भारत के उष्ण जलवायु का देश होने के कारण युवक एवं युवतियाँ शीघ्र ही सन्तति उत्पन्न करने योग्य हो जाते हैं, जिससे जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि हो रही है। ⦁ जन्म-दर का ऊँचा होना – भारत में जन्म-दर विश्व के अन्य विकासशील देशों से अधिक है, जबकि मृत्यु-दर कम है। फलस्वरूप जनसंख्या में निरन्तर वृद्धि होती जा रही है। ⦁ शिक्षा एवं साक्षरता की कमी – भारतीय जनसंख्या का केवल 74.04% भाग ही साक्षर अर्थात् पढ़ा-लिखा है। इनमें भी पुरुष 82.14% तथा महिलाएँ 65.46% ही साक्षर हैं, जबकि ग्रामीण जनसंख्या की साक्षरता इससे भी कम है। इस प्रकार अधिकांश भारतीय रूढ़िवादी एवं भाग्यवादी हैं, जो अधिक सन्तानोत्पत्ति करना अपनी नियति समझते हैं। ⦁ गरीबी एवं बेकस – भारत की अधिकांश जनसंख्या, मसेन एवं बेरोजगारी से त्रस्त है। उनका रहनसन एवं जीवनयापनका ढंगबहुत ही निम्न श्रेणी का है। इसे भी जनसंख्या-वृद्धि को बल मिला है। ⦁ कम आयु में सिह करना – भारत में बहुत-से क्षेत्र आज भी ऐसे हैं, जहाँ छोटी आयु में ही विवाहकल दियेमतेज़स्थान राज्य इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। इससे दम्पति कम आयु में ही सन्तान उत्पन्न करना आरम्भ कर देते हैं तथा जनसंख्या में वृद्धि होती जाती है। ⦁ विवाह की अनिवार्यता – भारत में प्रत्येक व्यक्ति के लिए विवाह करना अनिवार्य समझा जाता है तथा विवाह होते ही बच्चे पैदा करना उससे भी अधिक आवश्यक माना जाता है। इस प्रकार निरन्तर सन्तानोत्पत्ति से जनसंख्या में वृद्धि होती जाती है। ⦁ पुत्र-मोह का होना – अधिकांश भारतीय पुत्र-मोह से बँधे रहते हैं तथा पुत्र-प्राप्ति अनिवार्य समझते हैं। फलस्वरूप पुत्र प्राप्ति के लिए कभी-कभी कई-कई पुत्रियाँ जन्म ले लेती हैं। ⦁ संयुक्त परिवारप्रम – भारत के अनेक क्षेत्रों में आज भी संयुक्त परिवार प्रथा का प्रचलन है। इस प्रथा में बच्चों का लालन-पालन सुगमता से हो जाता है। इसी कारण बच्चों की संख्या में वृद्धि हो जाने से जनसंख्या में भी तीव्र गति से वृद्धि होती है। इसके साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक बच्चे परिवार की सुरक्षा समझे जाते हैं। ⦁ परिवार-कल्याण कार्यक्रमों का प्रचार-प्रसार न होना – देश के ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी परिवार कल्याण कार्यक्रमों का व्यापक रूप से प्रचार-प्रसार नहीं हो पाया है। अशिक्षित जनसंख्या सन्तति निरोध तथा गर्भनिरोधक साधनों का प्रयोग नहीं करती। फलस्वरूप जनसंख्या में अबाध गति से वृद्धि होती रहती है।
भारत में जनसंख्या-वृद्धि के कारण उत्पन्न समस्याएँ या जनसंख्या-वृद्धि का भारत के आर्थिक विकास पर प्रभाव Or Effects of Population Growth on Economic Development of India देश में तीव्र जनसंख्या वृद्धि से अनेक समस्याएँ उत्पन्न हो गयी हैं, जिनका विवरण निम्नलिखित है – (1) प्रति व्यक्ति आय में कमी – भारत में आज भी 46% जनता गरीबी की रेखा से नीचे अपना जीवन बसर कर रही है, अर्थात् जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि के कारण प्रति व्यक्ति आय में कमी आ गयी है। इससे निर्धनता में वृद्धि हुई है। (2) जीवन-स्तर का निम्न होना – देश में तीव्र जनसंख्या-वृद्धि के कारण प्रति व्यक्ति आय में तो कमी हुई ही है, साथ ही जनता का जीवन-स्तर भी निम्न हो गया है। निर्धनता के कारण वे निम्न जीवन-स्तर बिताने के लिए बाध्य हो गये हैं। उनकी प्राथमिक आवश्यकताएँ; जैसे-भोजन, वस्त्र एवं आवास की भी पूर्ति नहीं हो पाती। देश के बहुत-से लोग आज भी गन्दी बस्तियों में नारकीय जीवन व्यतीत कर रहे हैं। (3) बेरोजगारी की समस्या का होना – देश में तीव्र गति से जनसंख्या वृद्धि के कारण बेकारी की समस्या उग्र रूप धारण करती जा रही है। जनसंख्या वृद्धि के अनुपात में देश में रोजगार साधनों की वृद्धि नहीं हो पाती है। फलस्वरूप देश के 7 करोड़ से अधिक नवयुवक रोजगार साधनों की तलाश में भटक रहे हैं। (4) आर्थिक विकास की गति का अवरुद्ध होना – भारत में तीव्र जनसंख्या वृद्धि के कारण आर्थिक-विकास की जो दिशा निर्धारित की गयी थी, उसको प्राप्त करना कठिन हो रहा है, क्योंकि अतिरिक्त जनसंख्या की प्राथमिक आवश्यकताओं के साथ-साथ उनके स्वास्थ्य, शिक्षा, चिकित्सा आदि के लिए व्यवस्था करनी पड़ती है, अर्थात् अतिरिक्त संसाधन जुटाने के कारण आर्थिक विकास की गति अवरुद्ध हो जाती है। (5) पर्यावरण-प्रदूषण की समस्या-जनसंख्या – वृद्धि के कारण अतिरिक्त उत्पादन में वृद्धि के लिए वनों का भारी विनाश किया जा रहा है, जिससे पर्यावरण-प्रदूषण की समस्या उत्पन्न होती जा रही है। मानवोपयोगी सुविधाओं के अभाव के कारण भी प्रदूषण की समस्या बढ़ी है। इस ओर तुरन्त ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है अन्यथा देशवासियों का जीवन दूभर हो जाएगा। (6) अपराधों एवं अनैतिक कार्यों में वृद्धि – देश में तीव्र जनसंख्या-वृद्धि के कारण बेरोजगारी में भारी वृद्धि हुई है। बेरोजगार युवक एवं युवतियाँ पथ-भ्रष्ट हो गये हैं तथा उनका झुकाव अपराधों एवं अनैतिक कार्यों की ओर हो गया है। इसी कारण देश में आज अपराधों की संख्या में वृद्धि होती जा रही है। (7) जीवन-यापन सम्बन्धी साधनों की कमी – तीव्र जनसंख्या-वृद्धि से देश में आवास, मनोरंजन, शिक्षा, चिकित्सा आदि जीवनोपयोगी सुविधाओं की कमी हो गयी है। व्यक्ति जीवन-पर्यन्त इन्हीं साधनों की प्राप्ति में भटक रहा है। उसका जीवन अशान्त हो जाने के कारण वह व्याधियों से घिर गया है। (8) उत्पादक भूमि का ह्रास – तीव्र जनसंख्या वृद्धि के कारण देश में उत्पादक भूमि में कमी होती जा रही है, क्योंकि उनकी आवासीय समस्या के समाधान के लिए उत्पादक कृषि भूमि में आवासों का विकास किया जा रहा है। उनके लिए परिवहन, संचार, व्यापार, उद्योग आदि सुविधाओं के विस्तार के कारण उत्पादक भूमि का ह्रास होता जा रहा है। जनसंख्या-वृद्धि निवारण हेतु उपाय पिछले 80 वर्षों में जनसंख्या लगभग तीन गुनी हो गयी है। इस अतिशय जनसंख्या वृद्धि पर रोक लगाना अति आवश्यक है, क्योंकि देश को खाद्यान्न उत्पादन उस गति से नहीं बढ़ पाया है, जिस गति से जनसंख्या में वृद्धि हो रही है। जनसंख्या की इस वृद्धि को रोकने के लिए निम्नलिखित उपाय किये जा सकते हैं – (1) विवाह की आयु में वृद्धि करना – भारत में युवक एवं युवतियों के विवाह छोटी आयु में करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। दोनों के पूर्ण वयस्क हो जाने पर ही विवाह करने की छूट होनी चाहिए। विवाह जितनी अधिक आयु में किया जाएगा, बच्चे भी उतने ही कम उत्पन्न होंगे। अधिक आयु में विवाह करने के कारण युवतियाँ शिक्षा प्राप्त करेंगी या फिर उनकी रुचि सांस्कृतिक एवं सामाजिक कार्यों के प्रति आकर्षित होगी। इन कार्यक्रमों से अधिक सन्तानोत्पत्ति में कमी आएगी तथा जनसंख्या वृद्धि की समस्या का समाधान करने के प्रयासों में भी वृद्धि होगी। (2) उत्पादन में वृद्धि करना – आर्थिक उत्पादन में वृद्धि करने से मानव की रुचि एवं भौतिक समृद्धि में वृद्धि होती है तथा उसके रहन-सहन के स्तर में भी वृद्धि होती है। भारत के कृषि उत्पादन में वृद्धि होने की अभी पर्याप्त सम्भावनाएँ विद्यमान हैं तथा यदि देश में प्रति एकड़ उपज बढ़ा ली जाती है। तो उससे बढ़ती हुई जनसंख्या की खाद्यान्न आवश्यकता की पूर्ति की जा सकेगी। कृषि-क्षेत्र में विस्तार अभी भी किया जा सकता है। यदि राजस्थान में सिंचाई-सुविधाओं में वृद्धि कर दी जाए तो कुछ क्षेत्रों में बड़े-बड़े कृषि फार्म बनाये जा सकते हैं। (3) औद्योगीकरण का विकास – पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से देश में उद्योग-धन्धों का विकास किया जा रहा है। इससे बढ़ती हुई जनसंख्या को आजीविका के साधन प्राप्त होंगे तथा आर्थिक स्थिति भी सुधरेगी। इसके साथ-साथ परिवहन, संचार एवं व्यापार आदि कार्यों में भी विकास होगा। इससे बेरोजगारी की समस्या का निदान किया जा सकेगा तथा कुछ हद तक जनसंख्या समस्या का भी निदान हो सकेगा। (4) नगरीकरण में वृद्धि – विश्व के विकसित देशों में देखा गया है कि बड़े-बड़े औद्योगिक नगरों में जनसंख्या वृद्धि की दर नीची होती है। टोकियो, न्यूयॉर्क, पेरिस, मॉस्को, मुम्बई आदि नगर इसके प्रमुख उदाहरण हैं। इस कारण जापान ने इस समस्या के हल के लिए बड़े-बड़े नगरों का विकास कर लिया है तथा 80% से भी अधिक जनसंख्या नगरों में निवास कर रही है और जनसंख्या वृद्धि की दर में कमी आ गयी है, परन्तु सन् 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में अभी केवल 31.16% जनसंख्या ही नगरों में निवास करती है, जबकि लगभग 68.84% जनसंख्या ग्रामों में निवास करती है। अतः जनसंख्या-वृद्धि पर रोक लगाने के लिए देश का नगरीकरण किया जाना अति आवश्यक है। (5) शिक्षा का प्रचार एवं प्रसार – शिक्षा के प्रचार एवं प्रसार द्वारा विज्ञान एवं तकनीकी का अधिकाधिक प्रयोग कर मानव का जीवन-स्तर उच्च हो सकता है। शिक्षित जनसंख्या की मनोवृत्ति जनसंख्या वृद्धि की ओर कम होगी। वे जनसंख्या वृद्धि के दोषों से परिचित होंगे। इससे देश आर्थिक एवं सामाजिक क्षेत्रों में प्रगति कर सकेगा। (6) प्रवास – यूरोपीय देशों-ब्रिटेन, जर्मनी, इटली, फ्रांस, बेल्जियम आदि देशों ने अपनी तीव्र गति से बढ़ती हुई जनसंख्या की समस्या का हल प्रवास द्वारा कर लिया था। संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड, दक्षिणी अफ्रीका, ब्राजील, अर्जेण्टाइन आदि देशों में यूरोपीय ग्रंवासी जा बसे थे, परन्तु इन नये बसे हुए देशों की सरकारों ने काली एवं पीली जातियों के आवास पर राजनीतिक प्रतिबन्ध लगा दिये हैं। यदि ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड तथा दक्षिणी अफ्रीका अपनी श्वेत नीति को त्यागकर आवास का मार्ग खोल दें तो चीन, भारत एवं जापान की बढ़ती हुई जनसंख्या को इन देशों में सुगमता से भरण-पोषण प्राप्त हो सकता है। इस प्रकार प्रवास जनसंख्या समस्या के समाधान का एक ऐसा कारगर उपाय है जिससे उपलब्ध संसाधनों एवं जनसंख्या के बीच सामंजस्य स्थापित किया जा सकता है। (7) परिवार नियोजन एवं जन्म-दर पर नियन्त्रण – जनसंख्या वृद्धि न होने का स्थायी समाधान तो परिवार नियोजन एवं जन्म-दर पर नियन्त्रण करना है। नसबन्दी, बन्ध्याकरण एवं गर्भ निरोधक गोलियों तथा औषधियों का प्रयोग इस दिशा में अधिक कारगर है। इन विधियों के प्रचार-प्रसार द्वारा भी जन्म-दर पर नियन्त्रण पाया जा सकता है जिससे जनसंख्या वृद्धि को रोकने का स्थायी समाधान खोजा जा सकता है। इन योजनाओं को लागू करने के लिए नियम एवं कानून भी बनाये जा सकते हैं तथा उनका कड़ाई से पालन किया जाना अपेक्षित है। इस ओर लोगों को प्रोत्साहित किया जाना अति आवश्यक है। |
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संसार में सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश कौन-सा है ? |
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Answer» संसार में सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश चीन है। |
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भारत के किस राज्य में लिंग अनुपात सबसे अधिक है ? यह कितना है ? |
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Answer» भारत के केरल राज्य में लिंग अनुपात सबसे अधिक है। यह 1084 है। |
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पंजाब तथा हरियाणा में लिंग अनुपात कितना-कितना है ? |
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Answer» क्रमश: 895 तथा 879 |
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प्राकृतिक वृद्धि दर क्या होती है ? उदाहरण बताकर वर्णन कीजिए। |
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Answer» जन्म दर तथा मृत्यु दर के अन्तर को प्राकृतिक वृद्धि दर कहते हैं। यदि जन्म दर मृत्यु दर से अधिक हो तो प्राकृतिक वृद्धि दर सकारात्मक (+) होती है। विपरीत स्थिति में प्राकृतिक वृद्धि दर नकारात्मक (-) होती है। |
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जनसंख्या परिवर्तन कैसे होता है ? विस्तार से समझाइए। |
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Answer» किसी स्थान की जनसंख्या स्थिर नहीं रहती। इसमें परिवर्तन आता रहता है। यह परिवर्तन मुख्यतः दो तरीकों से होता है। (1) जन्म दर तथा मृत्यु दर में परिवर्तन (2) आवास एवं प्रवास। 1. जन्म दर तथा मृत्यु दर में परिवर्तन- जन्म दर बढ़ने पर जनसंख्या बढ़ जाती है। इसके विपरीत मृत्यु दर बढ़ने पर जनसंख्या में कमी आ जाती है। इन दोनों दरों के अंतर को प्राकृतिक वृद्धि दर कहते हैं ! यह दर जनसंख्या में हुए परिवर्तन को दर्शाती है। 2. आवास तथा प्रवास- काम आदि की तलाश में कुछ लोग विदेश में जाकर रहने लगते हैं या एक स्थान छोड़ कर किसी दूसरे स्थान पर बस जाते हैं। इस प्रकार जहां से लोग जाते हैं, वहां की जनसंख्या कम हो जाती है। दूसरी ओर जहां जाकर लोग बसते हैं, वहां की जनसंख्या बढ़ जाती है। |
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भारत में 0-14 वर्ष के आयु गुट प्रतिशत (%) में कितने हैं ? सरकार को भिन्न-भिन्न आयु गुटों के लिए क्या यत्न करने चाहिएं ? |
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Answer» भारत में 0-14 वर्ष का आयु गुट 30% है। सरकार को विभिन्न आयु गुटों के लिए निम्नलिखित यत्न करने चाहिए।
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साक्षरता किसे कहते हैं ? |
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Answer» जनसंख्या में शिक्षित लोगों की दर को साक्षरता कहते हैं। उदाहरण के लिए भारत में साक्षरता की दर 73% है अर्थात् प्रति 100 लोगों में 73 लोग ही पढ़े-लिखे हैं। |
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विश्व में सर्वाधिक जनसंख्या वाले दो देशों के नाम लिखिए। |
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Answer» विश्व में सर्वाधिक जनसंख्या वाले दो देश हैं—
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स्त्री-पुरुष अनुपात से क्या तात्पर्य है? |
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Answer» जनसंख्या के दो विशिष्ट अंग हैं-स्त्री एवं पुरुष। दोनों के बीच संख्यात्मक अनुपात को ‘स्त्री-पुरुष अनुपात’ कहा जाता है। |
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भारत का जनसंख्या के आधार पर वर्गीकरण कीजिए तथा उनमें से किसी एक का वर्णन कीजिए। |
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Answer» भारत में जनसंख्या के वितरण को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है
उच्च घनत्व के क्षेत्र – राज्यवार जनसंख्या के घनत्व की दृष्टि से पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, केरल, बिहार, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडू, पंजाब, झारखण्ड, हरियाणा, त्रिपुरा, असोम, गुजरात, आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक तथा गोवा राज्य और दिल्ली, चण्डीगढ़, लक्षद्वीप, पुदुचेरी, दमन एवं दीव, दादर एवं नगर हवेली के केन्द्रशासित क्षेत्र इस वर्ग में आते हैं। इन राज्यों तथा क्षेत्रों में अनेक प्रादेशिक तथा क्षेत्रीय विषमताएँ मिलती हैं। इस क्षेत्र में पर्याप्त वर्षा, भूमिगत जल-संसाधन, उर्वर जलोढ़ समतल भूमि, उन्नत कृषि, औद्योगिक विकास तथा परिवहन जाल के कारण जनसंख्या का उच्च घनत्व पाया जाता है। |
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भारत की जनसंख्या नीति का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए। |
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Answer» जनसंख्या वृद्धि को रोकने के लिए दो सरकारी कार्यक्रमों का विवरण निम्नवत् है 1. प्रजनन और बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम – दिनांक 10 अक्टूबर, 1997 को शुरू किये गये इस कार्यक्रम में जनन क्षमता के नियन्त्रण, सुरक्षित मातृत्व, बाल उत्तरजीविता और जननांग संक्रमण को सम्मिलित किया गया है। इस कार्यक्रम को मुख्यतया प्राथमिक स्वास्थ्य देख-रेख के आधारभूत ढॉचे। के द्वारा कार्यान्वित किया जाता है। स्वतन्त्र रूप से किये गये सर्वेक्षण से पता चलता है कि नवीं पंचवर्षीय योजना की अवधि में इस कार्यक्रम के कुछ पहलुओं के सम्बन्ध में निर्धारित लक्ष्यों को कुछ राज्यों ने प्राप्त कर लिया है। 2. राष्ट्रीय जनसंख्या नीति-2000 – जनसंख्या के इस कार्यक्रम में जनसंख्या के आकार को सीमित रखने के साथ ही जनसंख्या में गुणात्मक सुधार लाना आवश्यक समझा गया है। इस नीति में निम्नलिखित तीन उद्देश्यों को प्राथमिकता दी गयी है
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भारत के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए। |
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Answer» स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में अनेक परिवर्तन हुए हैं। भारत के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं— 1. भारत का 90% अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार समुद्री मार्गों द्वारा सम्पन्न होता है। वायु, सड़क एवं रेल परिवहन का योगदान मात्र 10% है। |
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भारत में वायु परिवहन का राष्ट्रीयकरण कब हुआ ? |
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Answer» भारत में वायु परिवहन का राष्ट्रीयकरण सन् 1953 ई० में किया गया। |
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भारत में परिवहन के प्रमुख साधन कौन-से हैं ? |
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Answer» भारत में परिवहन के प्रमुख साधन सड़कें, रेलमार्ग, वायुमार्ग तथा जलमार्ग हैं। |
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भारत की कौन-सी दो नदियाँ नौ-परिवहन के योग्य हैं ? |
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Answer» भारत की (1) गंगा तथा (2) ब्रह्मपुत्र नदियाँ नौ-परिवहन के योग्य हैं। |
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साक्षर किसे कहते हैं ? |
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Answer» जो व्यक्ति किसी भी भाषा में पढ़ सकता है, लिख सकता तथा समझ सकता है, उसे साक्षर कहा जाता है। |
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भारत में जूट की खेती के प्रमुख दो राज्यों के नाम बताइए। वहाँ इसकी खेती क्यों होती है ?याभारत में पटसन उद्योग के विकास के लिए उत्तरदायी दो कारकों का उल्लेख कीजिए। |
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Answer» भारत में जूट की खेती प्रमुख रूप से पश्चिम बंगाल तथा बिहार में होती है। जूट के उत्पादन के लिए उच्च एवं नम जलवायु की आवश्यकता पड़ती है। साधारणतया 25° से 35° सेग्रे तापमान इसके लिए आवश्यक होता है। जूट के पौधे के अंकुर निकलने के बाद अधिक जल की आवश्यकता पड़ती है। अत: इसकी खेती के लिए 100 से 200 सेमी या उससे भी अधिक वर्षा आवश्यक होती है। प्रति सप्ताह 2 से 3 सेमी वर्षा उपयुक्त रहती है। जूट की कृषि, भूमि के उत्पादक तत्त्वों को नष्ट कर देती है। अत: इसकी खेती उन्हीं भागों में की जाती है, जहाँ प्रति वर्ष नदियाँ अपनी बाढ़ द्वारा उपजाऊ मिट्टियों का निक्षेप करती रहती हैं। इसी कारण जूट की खेती डेल्टाई भागों में की जाती है। दोमट, कॉप एवं बलुई मिट्टियाँ भी इसके लिए। उपयुक्त रहती हैं। जूट की कृषि के लिए सस्ते एवं पर्याप्त संख्या में श्रमिकों की आवश्यकता पड़ती है, क्योंकि तैयार पौधों को काटने तथा उन्हें उपयोग हेतु तैयार करने में अधिक श्रम आवश्यक होता है। ये सभी सुविधाएँ उपर्युक्त दोनों राज्यों में उपलब्ध हैं। इसीलिए इन दोनों राज्यों में जूट की खेती प्रमुखता से होती है। |
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निम्नलिखित में से संचार का माध्यम कौन है?(क) वायु सेवा(ख) रेल सेवा(ग) दूरदर्शन(घ) जल सेवा |
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Answer» सही विकल्प है (ग) दूरदर्शन |
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पिन कोड से क्या अभिप्राय है? |
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Answer» पिन कोड छ: अंकों की एक संख्या होती है, जो सम्पूर्ण देश के नगरों एवं कस्बों को आवण्टित की गयी है। इस कोड की सहायता से राज्य, जनपद, तहसील एवं डाकघर का सुगमता से पता चल जाता है। |
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भारत का सर्वाधिक जनसंख्या वाला राज्य कौन-सा है?(क) उत्तर प्रदेश(ख) केरल(ग) बिहार(घ) पश्चिम बंगाल |
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Answer» (क) उत्तर प्रदेश |
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मानवीय संसाधन से आप क्या समझते हैं? यह देश के आर्थिक विकास में कैसे सहायक हो सकते हैं ? उदाहरण देकर समझाइए। |
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Answer» मानवीय संसाधन प्रत्येक देश की सम्पदा मुख्यतया दो भागों में विभाजित की जाती है– (i) प्राकृतिक संसाधन; जैसे-भूमि, खनिज पदार्थ, जल, वन, पशु आदि तथा मानव संसाधन और आर्थिक विकास किसी देश की सम्पूर्ण जनसंख्या को मानव संसाधन नहीं कहा जाता, अपितु जनसंख्या के केवल उस भाग को मानव संसाधन कहा जाता है जो शिक्षित हो, कुशल हो तथा जिसमें अर्जन या उत्पादन करने की क्षमता हो। इस प्रकार मानव संसाधन वह मानव पूंजी है, जिसे प्राकृतिक साधनों में लगाकर देश को आर्थिक विकास किया जाता है। दूसरे शब्दों में, यह भी कह सकते हैं कि देश के सम्पूर्ण मानव संसाधन को तो जनसंख्या कही जा सकता है, किन्तु पूरी जनसंख्या को मानव संसाधन नहीं कहा जा सकता। पर्यावरण या प्राकृतिक संसाधन से आशय उन सभी प्राकृतिक वस्तुओं से लिया जाता है, जो हमारे चारों ओर व्याप्त हैं। ये वस्तुएँ हैं-पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, वनस्पति व जीव-जन्तु। प्रकृति ने भारत को प्राकृतिक या पर्यावरणीय संसाधन उपहार के रूप में बड़ी उदारता से प्रदान किये हैं तथा इन पर्यावरणीय संसाधनों का सदुपयोग करने के लिए विशाल जनसंख्या भी दी है, किन्तु हमारी अधिकांश जनसंख्या मानव संसाधन के रूप में नहीं है। अत: हम अपने अपार पर्यावरणीय संसाधनों का उपयोग देश के विकास में उतना नहीं कर पा रहे हैं जितना कि करना चाहिए। इसी प्रकार, यदि किसी देश के पास पर्यावरणीय या प्राकृतिक संसाधन तो हों, किन्तु उन संसाधनों का दोहन या उपयोग करने के लिए पर्याप्त मानवीय संसाधन; अर्थात् कुशल जनसंख्या न हो तो वह देश अपने प्राकृतिक संसाधनों से देश के आर्थिक विकास के लिए कोई लाभदायक कदम नहीं उठा सकता। अतः स्पष्ट है कि किसी भी देश के आर्थिक विकास के लिए केवल प्राकृतिक संसाधनों का होना ही पर्याप्त नहीं है, अपितु उनके साथ-साथ मानवीय संसाधनों; अर्थात् कुशल जनसंख्या का होना भी जरूरी है। |
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मानवीय संसाधनों से क्या अभिप्राय है ? |
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Answer» मानवीय संसाधनों से अभिप्राय किसी देश की जनसंख्या से है। मानवीय संसाधनों को गिनती तथा गुणवत्ता दोनों पक्षों से देखा जाता है। किसी देश की उन्नति का आधार गुणवत्ता वाली जनसंख्या होती है। |
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