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भारत में जनसंख्या की समस्या पर एक भौगोलिक निबन्ध लिखिए। याभारत में जनसंख्या की समस्याओं का वर्णन कीजिए तथा जनसंख्या नियन्त्रण के लिए उपाय सुझाइए। याभारत में जनसंख्या-वृद्धि के उत्तरदायी कारकों की विवेचना कीजिए।याभारत में जनसंख्या-वृद्धि के कारणों पर प्रकाश डालते हुए इससे उत्पन्न समस्याओं के निराकरण हेतु सुझाव दीजिए। याभारत में जनसंख्या की समस्याओं की विवेचना कीजिए तथा उनके समाधान के उपायों को सुझाइए।याभारत में जनसंख्या की समस्याओं का वर्णन कीजिए। |
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Answer» भारत में जनसंख्या-वृद्धि के कारण भारत में सन् 1991 की जनगणना के अनुसार 84.63 करोड़ व्यक्ति निवास कर रहे थे। यह जनसंख्या सन् 2011 की जनगणनानुसार 121.02 करोड़ हो गयी है। देश में जनसंख्या वृद्धि की दर 1971 से 1981 के बीच 24.66% थी, जबकि सन् 1981 से 1991 के दशक में 23.87% थी। सन् 2001-2011 के बीच 17.64% जनसंख्या-वृद्धि अंकित की गयी है। पिछले 80 वर्षों के अन्तराल में जनसंख्या तीन गुनी से भी अधिक हो गयी है। इस अतिशय जनसंख्या वृद्धि के निम्नलिखित कारण हैं – ⦁ उष्ण जलवायु – भारत के उष्ण जलवायु का देश होने के कारण युवक एवं युवतियाँ शीघ्र ही सन्तति उत्पन्न करने योग्य हो जाते हैं, जिससे जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि हो रही है। ⦁ जन्म-दर का ऊँचा होना – भारत में जन्म-दर विश्व के अन्य विकासशील देशों से अधिक है, जबकि मृत्यु-दर कम है। फलस्वरूप जनसंख्या में निरन्तर वृद्धि होती जा रही है। ⦁ शिक्षा एवं साक्षरता की कमी – भारतीय जनसंख्या का केवल 74.04% भाग ही साक्षर अर्थात् पढ़ा-लिखा है। इनमें भी पुरुष 82.14% तथा महिलाएँ 65.46% ही साक्षर हैं, जबकि ग्रामीण जनसंख्या की साक्षरता इससे भी कम है। इस प्रकार अधिकांश भारतीय रूढ़िवादी एवं भाग्यवादी हैं, जो अधिक सन्तानोत्पत्ति करना अपनी नियति समझते हैं। ⦁ गरीबी एवं बेकस – भारत की अधिकांश जनसंख्या, मसेन एवं बेरोजगारी से त्रस्त है। उनका रहनसन एवं जीवनयापनका ढंगबहुत ही निम्न श्रेणी का है। इसे भी जनसंख्या-वृद्धि को बल मिला है। ⦁ कम आयु में सिह करना – भारत में बहुत-से क्षेत्र आज भी ऐसे हैं, जहाँ छोटी आयु में ही विवाहकल दियेमतेज़स्थान राज्य इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। इससे दम्पति कम आयु में ही सन्तान उत्पन्न करना आरम्भ कर देते हैं तथा जनसंख्या में वृद्धि होती जाती है। ⦁ विवाह की अनिवार्यता – भारत में प्रत्येक व्यक्ति के लिए विवाह करना अनिवार्य समझा जाता है तथा विवाह होते ही बच्चे पैदा करना उससे भी अधिक आवश्यक माना जाता है। इस प्रकार निरन्तर सन्तानोत्पत्ति से जनसंख्या में वृद्धि होती जाती है। ⦁ पुत्र-मोह का होना – अधिकांश भारतीय पुत्र-मोह से बँधे रहते हैं तथा पुत्र-प्राप्ति अनिवार्य समझते हैं। फलस्वरूप पुत्र प्राप्ति के लिए कभी-कभी कई-कई पुत्रियाँ जन्म ले लेती हैं। ⦁ संयुक्त परिवारप्रम – भारत के अनेक क्षेत्रों में आज भी संयुक्त परिवार प्रथा का प्रचलन है। इस प्रथा में बच्चों का लालन-पालन सुगमता से हो जाता है। इसी कारण बच्चों की संख्या में वृद्धि हो जाने से जनसंख्या में भी तीव्र गति से वृद्धि होती है। इसके साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक बच्चे परिवार की सुरक्षा समझे जाते हैं। ⦁ परिवार-कल्याण कार्यक्रमों का प्रचार-प्रसार न होना – देश के ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी परिवार कल्याण कार्यक्रमों का व्यापक रूप से प्रचार-प्रसार नहीं हो पाया है। अशिक्षित जनसंख्या सन्तति निरोध तथा गर्भनिरोधक साधनों का प्रयोग नहीं करती। फलस्वरूप जनसंख्या में अबाध गति से वृद्धि होती रहती है।
भारत में जनसंख्या-वृद्धि के कारण उत्पन्न समस्याएँ या जनसंख्या-वृद्धि का भारत के आर्थिक विकास पर प्रभाव Or Effects of Population Growth on Economic Development of India देश में तीव्र जनसंख्या वृद्धि से अनेक समस्याएँ उत्पन्न हो गयी हैं, जिनका विवरण निम्नलिखित है – (1) प्रति व्यक्ति आय में कमी – भारत में आज भी 46% जनता गरीबी की रेखा से नीचे अपना जीवन बसर कर रही है, अर्थात् जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि के कारण प्रति व्यक्ति आय में कमी आ गयी है। इससे निर्धनता में वृद्धि हुई है। (2) जीवन-स्तर का निम्न होना – देश में तीव्र जनसंख्या-वृद्धि के कारण प्रति व्यक्ति आय में तो कमी हुई ही है, साथ ही जनता का जीवन-स्तर भी निम्न हो गया है। निर्धनता के कारण वे निम्न जीवन-स्तर बिताने के लिए बाध्य हो गये हैं। उनकी प्राथमिक आवश्यकताएँ; जैसे-भोजन, वस्त्र एवं आवास की भी पूर्ति नहीं हो पाती। देश के बहुत-से लोग आज भी गन्दी बस्तियों में नारकीय जीवन व्यतीत कर रहे हैं। (3) बेरोजगारी की समस्या का होना – देश में तीव्र गति से जनसंख्या वृद्धि के कारण बेकारी की समस्या उग्र रूप धारण करती जा रही है। जनसंख्या वृद्धि के अनुपात में देश में रोजगार साधनों की वृद्धि नहीं हो पाती है। फलस्वरूप देश के 7 करोड़ से अधिक नवयुवक रोजगार साधनों की तलाश में भटक रहे हैं। (4) आर्थिक विकास की गति का अवरुद्ध होना – भारत में तीव्र जनसंख्या वृद्धि के कारण आर्थिक-विकास की जो दिशा निर्धारित की गयी थी, उसको प्राप्त करना कठिन हो रहा है, क्योंकि अतिरिक्त जनसंख्या की प्राथमिक आवश्यकताओं के साथ-साथ उनके स्वास्थ्य, शिक्षा, चिकित्सा आदि के लिए व्यवस्था करनी पड़ती है, अर्थात् अतिरिक्त संसाधन जुटाने के कारण आर्थिक विकास की गति अवरुद्ध हो जाती है। (5) पर्यावरण-प्रदूषण की समस्या-जनसंख्या – वृद्धि के कारण अतिरिक्त उत्पादन में वृद्धि के लिए वनों का भारी विनाश किया जा रहा है, जिससे पर्यावरण-प्रदूषण की समस्या उत्पन्न होती जा रही है। मानवोपयोगी सुविधाओं के अभाव के कारण भी प्रदूषण की समस्या बढ़ी है। इस ओर तुरन्त ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है अन्यथा देशवासियों का जीवन दूभर हो जाएगा। (6) अपराधों एवं अनैतिक कार्यों में वृद्धि – देश में तीव्र जनसंख्या-वृद्धि के कारण बेरोजगारी में भारी वृद्धि हुई है। बेरोजगार युवक एवं युवतियाँ पथ-भ्रष्ट हो गये हैं तथा उनका झुकाव अपराधों एवं अनैतिक कार्यों की ओर हो गया है। इसी कारण देश में आज अपराधों की संख्या में वृद्धि होती जा रही है। (7) जीवन-यापन सम्बन्धी साधनों की कमी – तीव्र जनसंख्या-वृद्धि से देश में आवास, मनोरंजन, शिक्षा, चिकित्सा आदि जीवनोपयोगी सुविधाओं की कमी हो गयी है। व्यक्ति जीवन-पर्यन्त इन्हीं साधनों की प्राप्ति में भटक रहा है। उसका जीवन अशान्त हो जाने के कारण वह व्याधियों से घिर गया है। (8) उत्पादक भूमि का ह्रास – तीव्र जनसंख्या वृद्धि के कारण देश में उत्पादक भूमि में कमी होती जा रही है, क्योंकि उनकी आवासीय समस्या के समाधान के लिए उत्पादक कृषि भूमि में आवासों का विकास किया जा रहा है। उनके लिए परिवहन, संचार, व्यापार, उद्योग आदि सुविधाओं के विस्तार के कारण उत्पादक भूमि का ह्रास होता जा रहा है। जनसंख्या-वृद्धि निवारण हेतु उपाय पिछले 80 वर्षों में जनसंख्या लगभग तीन गुनी हो गयी है। इस अतिशय जनसंख्या वृद्धि पर रोक लगाना अति आवश्यक है, क्योंकि देश को खाद्यान्न उत्पादन उस गति से नहीं बढ़ पाया है, जिस गति से जनसंख्या में वृद्धि हो रही है। जनसंख्या की इस वृद्धि को रोकने के लिए निम्नलिखित उपाय किये जा सकते हैं – (1) विवाह की आयु में वृद्धि करना – भारत में युवक एवं युवतियों के विवाह छोटी आयु में करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। दोनों के पूर्ण वयस्क हो जाने पर ही विवाह करने की छूट होनी चाहिए। विवाह जितनी अधिक आयु में किया जाएगा, बच्चे भी उतने ही कम उत्पन्न होंगे। अधिक आयु में विवाह करने के कारण युवतियाँ शिक्षा प्राप्त करेंगी या फिर उनकी रुचि सांस्कृतिक एवं सामाजिक कार्यों के प्रति आकर्षित होगी। इन कार्यक्रमों से अधिक सन्तानोत्पत्ति में कमी आएगी तथा जनसंख्या वृद्धि की समस्या का समाधान करने के प्रयासों में भी वृद्धि होगी। (2) उत्पादन में वृद्धि करना – आर्थिक उत्पादन में वृद्धि करने से मानव की रुचि एवं भौतिक समृद्धि में वृद्धि होती है तथा उसके रहन-सहन के स्तर में भी वृद्धि होती है। भारत के कृषि उत्पादन में वृद्धि होने की अभी पर्याप्त सम्भावनाएँ विद्यमान हैं तथा यदि देश में प्रति एकड़ उपज बढ़ा ली जाती है। तो उससे बढ़ती हुई जनसंख्या की खाद्यान्न आवश्यकता की पूर्ति की जा सकेगी। कृषि-क्षेत्र में विस्तार अभी भी किया जा सकता है। यदि राजस्थान में सिंचाई-सुविधाओं में वृद्धि कर दी जाए तो कुछ क्षेत्रों में बड़े-बड़े कृषि फार्म बनाये जा सकते हैं। (3) औद्योगीकरण का विकास – पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से देश में उद्योग-धन्धों का विकास किया जा रहा है। इससे बढ़ती हुई जनसंख्या को आजीविका के साधन प्राप्त होंगे तथा आर्थिक स्थिति भी सुधरेगी। इसके साथ-साथ परिवहन, संचार एवं व्यापार आदि कार्यों में भी विकास होगा। इससे बेरोजगारी की समस्या का निदान किया जा सकेगा तथा कुछ हद तक जनसंख्या समस्या का भी निदान हो सकेगा। (4) नगरीकरण में वृद्धि – विश्व के विकसित देशों में देखा गया है कि बड़े-बड़े औद्योगिक नगरों में जनसंख्या वृद्धि की दर नीची होती है। टोकियो, न्यूयॉर्क, पेरिस, मॉस्को, मुम्बई आदि नगर इसके प्रमुख उदाहरण हैं। इस कारण जापान ने इस समस्या के हल के लिए बड़े-बड़े नगरों का विकास कर लिया है तथा 80% से भी अधिक जनसंख्या नगरों में निवास कर रही है और जनसंख्या वृद्धि की दर में कमी आ गयी है, परन्तु सन् 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में अभी केवल 31.16% जनसंख्या ही नगरों में निवास करती है, जबकि लगभग 68.84% जनसंख्या ग्रामों में निवास करती है। अतः जनसंख्या-वृद्धि पर रोक लगाने के लिए देश का नगरीकरण किया जाना अति आवश्यक है। (5) शिक्षा का प्रचार एवं प्रसार – शिक्षा के प्रचार एवं प्रसार द्वारा विज्ञान एवं तकनीकी का अधिकाधिक प्रयोग कर मानव का जीवन-स्तर उच्च हो सकता है। शिक्षित जनसंख्या की मनोवृत्ति जनसंख्या वृद्धि की ओर कम होगी। वे जनसंख्या वृद्धि के दोषों से परिचित होंगे। इससे देश आर्थिक एवं सामाजिक क्षेत्रों में प्रगति कर सकेगा। (6) प्रवास – यूरोपीय देशों-ब्रिटेन, जर्मनी, इटली, फ्रांस, बेल्जियम आदि देशों ने अपनी तीव्र गति से बढ़ती हुई जनसंख्या की समस्या का हल प्रवास द्वारा कर लिया था। संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड, दक्षिणी अफ्रीका, ब्राजील, अर्जेण्टाइन आदि देशों में यूरोपीय ग्रंवासी जा बसे थे, परन्तु इन नये बसे हुए देशों की सरकारों ने काली एवं पीली जातियों के आवास पर राजनीतिक प्रतिबन्ध लगा दिये हैं। यदि ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड तथा दक्षिणी अफ्रीका अपनी श्वेत नीति को त्यागकर आवास का मार्ग खोल दें तो चीन, भारत एवं जापान की बढ़ती हुई जनसंख्या को इन देशों में सुगमता से भरण-पोषण प्राप्त हो सकता है। इस प्रकार प्रवास जनसंख्या समस्या के समाधान का एक ऐसा कारगर उपाय है जिससे उपलब्ध संसाधनों एवं जनसंख्या के बीच सामंजस्य स्थापित किया जा सकता है। (7) परिवार नियोजन एवं जन्म-दर पर नियन्त्रण – जनसंख्या वृद्धि न होने का स्थायी समाधान तो परिवार नियोजन एवं जन्म-दर पर नियन्त्रण करना है। नसबन्दी, बन्ध्याकरण एवं गर्भ निरोधक गोलियों तथा औषधियों का प्रयोग इस दिशा में अधिक कारगर है। इन विधियों के प्रचार-प्रसार द्वारा भी जन्म-दर पर नियन्त्रण पाया जा सकता है जिससे जनसंख्या वृद्धि को रोकने का स्थायी समाधान खोजा जा सकता है। इन योजनाओं को लागू करने के लिए नियम एवं कानून भी बनाये जा सकते हैं तथा उनका कड़ाई से पालन किया जाना अपेक्षित है। इस ओर लोगों को प्रोत्साहित किया जाना अति आवश्यक है। |
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