| 1. |
भारत में प्रति हेक्टेयर उत्पादन कम होने के क्या कारण हैं ? कृषि उत्पादन को बढ़ाने के उपाय लिखिए।याभारतीय कृषि में निम्न उत्पादकता के किन्हीं तीन कारणों पर प्रकाश डालिए तथा इसकी उत्पादकता बढ़ाने हेतु कोई दो महत्त्वपूर्ण सुझाव दीजिए।याभारतीय कृषि की उत्पादकता बढ़ाने हेतु दो सुझाव (उपाय) दीजिए।याभारत में कृषि के पिछड़ेपन के लिए उत्तरदायी किन्हीं दो कारणों का उल्लेख कीजिए।याभारतीय कृषि की निम्न उत्पादकता बढ़ाने के लिए चार सुझाव दीजिए।याभारत में कृषि की न्यून उत्पादकता के पाँच कारणों का उल्लेख कीजिए। याकृषि के उत्पादन में वृद्धि करने के लिए किन्हीं दो महत्त्वपूर्ण उपायों को लिखिए।याभारतीय कृषि की निम्न उत्पादकता के किन्हीं तीन कारणों का उल्लेख कीजिए तथा उत्पादकता वृद्धि के लिए तीन सुझाव दीजिए। |
|
Answer» प्रति हेक्टेयर उत्पादन कम होने के कारण भारत एक कृषिप्रधान देश है। देश की लगभग 72% जनसंख्या अपनी जीविका के लिए कृषि पर आश्रित है। भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान होने के बावजूद यह पिछड़ी हुई अवस्था में है। अन्य देशों की तुलना में भारत में प्रति हेक्टेयर-कृषि-उत्पादन बहुत कम है। इसके लिए मुख्यतया निम्नलिखित कारण उत्तरदायी हैं| 1. कृषि जोतों का छोटा होना – भारत में कृषि जोतों का आकार बहुत छोटा है। लगभग 51 प्रतिशत जोतों का आकार एक हेक्टेयर से भी कम है। फिर कृषि जोत बिखरी हुई अवस्था में एक-दूसरे से। दूर-दूर हैं। छोटी जोतों पर वैज्ञानिक ढंग से खेती करना सम्भव नहीं होता तथा न ही सिंचाई की समुचित व्यवस्था हो पाती है। 2. कृषिकावर्षा पर निर्भर होना – आज भी भारतीय कृषि का लगभग 80% भाग वर्षा पर निर्भर करता है। वर्षा की अनिश्चितता एवं अनियमितता के कारण भारतीय कृषि ‘मानसून का जूआ’ कहलाती है। देश के कुछ क्षेत्रों में अतिवृष्टि तथा बाढ़ों के कारण फसलें नष्ट हो जाती हैं। 3. भूमि पर जनसंख्याको अत्यधिक भार – जनसंख्या में तीव्र वृद्धि के कारण भूमि पर जनसंख्या का भार निरन्तर बढ़ता गया है। परिणामतः प्रति व्यक्ति उपलब्ध भूमि का क्षेत्रफल घटता गया है, साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में अदृश्य बेरोजगारी तथा अल्प रोजगार की समस्याएँ बढ़ी हैं और किसानों की गरीबी तथा ऋणग्रस्तता में वृद्धि हुई है। 4. सिंचाई सुविधाओं का अभाव – भारत में सिंचित क्षेत्र केवल 33.14% है। असिंचित क्षेत्रों में किसान अपनी भूमि में एक ही फसल उगा पाते हैं, जिस कारण भारतीय कृषि की उत्पादकता कम है। 5. प्राचीन कृषि-यन्त्र – पाश्चात्य देशों में कृषि के आधुनिक यन्त्रों का प्रयोग किया जाता है, जब कि भारत के अनेक क्षेत्रों में आज भी हल, पटेला, दराँती, कस्सी आदि अत्यधिक प्राचीन यन्त्रों द्वारा कृषि की जाती है, जिस कारण भारतीय कृषि की उत्पादकता कम है। 6. दोषपूर्ण भूमि-व्यवस्था – भारत में अनेक वर्षों तक देश की लगभग 40% भूमि जमींदार, जागीरदार आदि मध्यस्थों के पास रही। किसान इन मध्यस्थों के काश्तकार होते थे। स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद इन मध्यस्थों के उन्मूलन से भी छोटे किसानों की दशा में विशेष सुधार नहीं हो पाया। आज भी ऐसे असंख्य किसान हैं, जो दूसरों की भूमि पर खेती करते हैं। 7, कृषकों की अशिक्षा तथा निर्धनता – निर्धनता के कारण देश के कृषक आधुनिक यन्त्र, उत्तम बीज, खाद आदि खरीदने तथा उनका प्रयोग करने में असमर्थ हैं। शिक्षा के अभाव के कारण वे आधुनिक कृषि-विधियों का भी प्रयोग नहीं कर पाते। भारत में अधिक उपज देने वाले उन्नत बीजों की भी कमी है। वित्तीय सुविधाओं के अभाव के कारण किसान अपना समय, शक्ति तथा धन कृषि की उन्नति में नहीं लगा पाते। 8. फसलों के रोग – फसले-सम्बन्धी विभिन्न रोगों की समुचित रोकथाम न हो पाने के कारण भी भारतीय कृषि की उत्पादकता कम है। प्रत्येक वर्ष कीटाणु तथा जंगली पशु-पक्षी करोड़ों रुपये की फसलों को नष्ट कर देते हैं। 9. अन्य कारण – भूमि कटाव, जलाधिक्य, नाइट्रोजन की कमी आदि के कारण भी भारतीय कृषि की उत्पादकता कम है। कृषि-उत्पादन बढ़ाने के उपाय भारत में कृषि-उत्पादन बढ़ाने के लिए निम्नलिखित उपाय किये जाने चाहिए 1. जनसंख्या में तीव्र वृद्धि पर नियन्त्रण – भूमि पर जनसंख्या के अत्यधिक भार को कम करने तथा कृषि जोतों के उपविभाजन तथा विखण्डन को रोकने के लिए देश की जनसंख्या में तीव्र गति से होने वाली वृद्धि को प्रभावी ढंग से नियन्त्रित करना आवश्यक है। 2. सिंचाई सुविधाओं का विकास – गाँवों में कुएँ, ट्यूबवेल, नहरों आदि का समुचित प्रबन्ध करके सिंचाई-सुविधाओं का विकास तथा विस्तार किंया जा सकता है। 3. उन्नत बीजों व खाद की समुचित व्यवस्था – सरकारी बीज-गोदामों की स्थापना करके कृषकों को उचित मूल्य पर उन्नत बीज दिये जाने चाहिए। रासायनिक खाद के उत्पादन में वृद्धि करके उसे किसानों को उचित मूल्य पर गाँवों में ही उपलब्ध कराना चाहिए। 4. फसलों की रक्षा – जंगली पशुओं, कीटाणुओं तथा रोगों से कृषि-उपजों का बचाव किया जाना चाहिए। बचाव के उपायों का गाँवों में प्रदर्शन और प्रचार होना चाहिए तथा कीटाणुनाशक दवाइयाँ उचित मूल्य पर गाँवों में ही उपलब्धं करायी जानी चाहिए। 5. भूमि संरक्षण – वृक्षारोपण, बाँध, मेड़ आदि उपायों द्वारा भूमि का संरक्षण किया जाना चाहिए तथा किसानों को इसके लाभ-हानि से अवगत कराना चाहिए। 6. आधुनिक कृषि – यन्त्रों का प्रबन्ध-खेती के पुराने ढंग के औजारों की हानियाँ बतलाकर किसानों को आधुनिक कृषि-यन्त्रों का प्रयोग समझाना चाहिए और इनको उचित कीमतों पर गाँवों में ही उपलब्ध कराया जाना चाहिए। 7. छोटे तथा बिखरे खेतों का एकीकरण – चकबन्दी की सहायता से छोटे व बिखरे खेतों का एकीकरण करके अनार्थिक जोतों को आर्थिक जोतों में बदला जा सकता है। सहकारी खेती को अपनाकर भी खेतों के आकार को बड़ा करके बड़े पैमाने पर खेती की जा सकती है तथा कृषि उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है। 8. साख-सुविधाओं का विस्तार – किसानों को कम ब्याज पर उत्तम बीज, रासायनिक खाद, आधुनिक यन्त्र आदि खरीदने के लिए पर्याप्त मात्रा में ऋण मिलने चाहिए। इसके लिए सहकारी साख समितियों का विकास किया जाना चाहिए। भूमि विकास बैंकों तथा क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की अधिक संख्या में स्थापना की जानी चाहिए तथा प्राकृतिक विपत्तियों के समय सरकार द्वारा किसानों को अधिक सहायता दी जानी चाहिए। 9. शिक्षा का प्रसार – किसानों में शिक्षा का प्रसार करके कृषि सम्बन्धी विभिन्न समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। शिक्षा के प्रसार से किसानों को आधुनिक कृषि-यन्त्रों तथा नयी उत्पादन- विधियों का ज्ञान कराया जा सकता है। |
|