| 1. |
प्राथमिक व्यवसाय से आप क्या समझते हैं ? किन्हीं दो प्राथमिक व्यवसायों का वर्णन कीजिए। |
|
Answer» प्राथमिक व्यवसाय भोजन-प्राप्ति तथा पृथ्वी पर जीवित रहने के लिए मनुष्य किसी-न-किसी रूप में कोई-न-कोई कार्य अवश्य करता है। सामान्य जन्तुओं को अपने भोजन के लिए स्वयं इधर-उधर घूमना पड़ता है तथा बड़े जन्तुओं को अपने भोजन की आवश्यकताएँ पूरी करने के लिए एक बड़े क्षेत्र की आवश्यकता होती है। मनुष्य की स्थिति अन्य जन्तुओं से भिन्न है। मनुष्य ने श्रम-विभाजन किया है, जिससे सभी लोग केवल खाद्य पदार्थों के उत्पादन में ही न लगे रहे। इस व्यवस्था में कुछ लोग तो खाद्य पदार्थों के उत्पादन में लग जाते हैं और कुछ लोगों को समाज की अन्य आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कई अन्य काम-धन्धे करते हैं। इस प्रकार के व्यवसाय को प्राथमिक व्यवसाय कहते हैं। प्राथमिक व्यवसाय के अन्तर्गत आखेट, पशुपालन, मत्स्यपालन, कृषि तथा खनन कार्य की गणना की जाती है 1. आखेट एवं संग्रहण – समाज का सबसे आरम्भिक रूप आखेट अवस्था का था। इस युग में लोग छोटे-छोटे समूहों में अलग-अलग रहते और शिकार करते थे। जब मानव को जंगली जानवरों से भय हुआ तो उसने उन्हें मारना शुरू कर दिया और उनका शिकार करके अपना पेट भरना भी सीख लिया। इस प्रकार आखेट मानव का सबसे प्राचीन व्यवसाय बन गया। पृथ्वी पर अभी भी कुछ प्रदेशों के लोग। सादा जीवन बिताते हैं। ऐसे लोग पूरी तरह प्रकृति पर निर्भर करते हैं। वे खाद्य पदार्थों की खोज में इधर-उधर घूमते रहते हैं। पशु-पक्षियों के आखेट तथा झीलों और नदियों से मछली पकड़ कर ये लोग संग्रहण से प्राप्त अपने भोजन की कमी को ही पूरा नहीं करते, वरन् इनसे उन्हें अतिरिक्त पौष्टिकता भी मिलती है। ये लोग शिकार के लिए साधारण हथियार; जैसे-भाले, धनुष-बाण, जाल आदि का प्रयोग करते हैं। अफ्रीका के पिग्मी तथा मलेशिया के सेमांग लोग उष्ण कटिबन्धीय वनों में रहते हैं। अफ्रीका के ही बुशमैन और ऑस्ट्रेलिया के आदिम लोग उष्ण कटिबन्धीय मरुस्थल में रहते हैं एवं इनुइट तथा लैप्स उत्तर-ध्रुवीय प्रदेशों में रहते हैं। भारत में अब आखेट का महत्त्व अत्यधिक कम हो चुका है। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, असोम, मेघालय, मणिपुर, त्रिपुरा तथा दक्षिण भारत की आदिम जनजातियाँ आखेट द्वारा ही अपना जीवन-यापन करती हैं। वन्य-जीवों की संख्या लगातार कम होते रहने के कारण सरकार ने वन्य-जीवों के आखेट पर प्रतिबन्ध लगा दिया है। इसके अतिरिक्त वर्तमान समय में पर्यावरण संरक्षण के कारण यह व्यवसाय लुप्तप्राय ही हो चुका है। 2. पशुपालन – भारत में पशुपालन व्यवसाय कृषि के पूरक रूप में किया जाता है। यह पाश्चात्य देशों के वाणिज्यिक पशुपालन से सर्वथा भिन्न है। देश की दो-तिहाई कृषक जनसंख्या अपने जीविकोपार्जन के लिए गाय, बैल, भैंस आदि पालती है, जो उनके कृषि-कार्य में भी सहायक होते हैं। कुछ आदिवासी वर्ग भी पशुपालन द्वारा आजीविका प्राप्त करते हैं। पशुपालन पर आधारित प्रमुख उद्योग दुग्ध उत्पादन या डेयरी उद्योग है। वैसे तो हमारे देश में गायों तथा भैंसों से दुग्ध उत्पादन विदेशों की तुलना में अल्प ही है, किन्तु देश में इनकी संख्या अधिक होने के कारण भारत 1999-2000 ई० में विश्व का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश बन सका। वर्ष 2000-01 के दौरान 81 मिलियन टन दूध का उत्पादन हुआ है, जो पिछले वर्ष की तुलना में 3 मिलियन टन अधिक था। पशुधन से देश में 9.8 मिलियन लोगों तथा सहायक क्षेत्र में 8.6 मिलियन लोगों को नियमित रोजगार मिलता है। यहाँ राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड के अनुसार पिछले ढाई दशक में दुग्ध उत्पादन में तीन गुना वृद्धि हुई है। इस बोर्ड द्वारा उठाये गये कदमों अर्थात् ‘श्वेत क्रान्ति’ या ‘ऑपरेशन फ्लड’ द्वारा यह सम्भव हो पाया है। देश में इस समय 7 करोड़ दुग्ध उत्पादक हैं। दूध उत्पादन में भैंसों का सर्वाधिक योगदान है। भारत में विश्व की 57% भैंसें तथा 16% गायें हैं। |
|