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भारत में बढ़ती हुई जनसंख्या से उत्पन्न समस्याओं की विवेचना कीजिए।याभारत में बढ़ती जनसंख्या की किन्हीं तीन समस्याओं की विवेचना कीजिए।यातेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण क्या-क्या समस्याएँ पैदा हो जाती हैं ?याभारत में जनसंख्या विस्फोट से उत्पन्न किन्हीं दो समस्याओं का वर्णन कीजिए।यातीव्र जनसंख्या वृद्धि के किन्हीं दो दुष्परिणामों का उल्लेख कीजिए।याभारत में बढ़ती हुई जनसंख्या के तीन प्रभावों का उल्लेख कीजिए।

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जनसंख्या का आर्थिक विकास पर प्रभाव

जनसंख्या तथा आर्थिक विकास में घनिष्ठ सम्बन्ध है। किसी देश का आर्थिक विकास प्राकृतिक संसाधनों तथा जनसंख्या के आकार तथा उसकी कार्यक्षमता पर निर्भर करता है। जनसंख्या की दृष्टि से भारत का विश्व में दूसरा स्थान है। भारत विश्व के 2.4% क्षेत्रफल पर विश्व की 1.5% आय के द्वारा 16.7% जनसंख्या का पालन-पोषण कर रहा है। ये आँकड़े बताते हैं कि हमारी आर्थिक प्रगति को ‘अत्यधिक जनसंख्या कैसे निष्प्रभावी बना रही है। गत 50 वर्षों में जनसंख्या में निरन्तर तीव्र वृद्धि के कारण जनसंख्या-विस्फोट की स्थिति उत्पन्न हो गयी है। बढ़ती हुई जनसंख्या भारत के लिए अभिशाप सिद्ध हुई है, क्योंकि इसने देश में  निम्नलिखित समस्याएँ उत्पन्न करके देश के आर्थिक विकास को ग्रहण लगा दिया है–

1. बेरोजगारी में वृद्धि – भारत में जनसंख्या वृद्धि के कारण बेरोजगारों की संख्या निरन्तर बढ़ती जा रही है। देश में साधनों की कमी के कारण सभी को रोजगार नहीं दिलाया जा सकता। परिणामतः देश में शिक्षित बेरोजगारी तथा अल्प बेरोजगारी बड़े स्तर पर पायी जाती है।

2. प्रति व्यक्ति आय निम्न – पंचवर्षीय योजनाओं के अन्तर्गत देश की राष्ट्रीय आय में निरन्तर वृद्धि हुई है। किन्तु बढ़ती जनसंख्या के कारण देश में प्रति व्यक्ति आय का स्तर अत्यन्त निम्न है। आज भी भारत में प्रति व्यक्ति आय विश्व के राष्ट्रों की तुलना में बहुत कम है।

3. निर्धनता में वृद्धि – भारत की लगभग 23.76 करोड़ जनसंख्या गरीबी की रेखा से नीचे का जीवन व्यतीत कर रही है तथा भारतीय अर्थव्यवस्था निर्धनता के दुश्चक्र में फंसी हुई है। जनसंख्या में तेजी से वृद्धि के कारण भारत में मकानों की समस्या गम्भीर रूप धारण करती जा रही है।

4. कीमतों में तीव्र वृद्धि – जनसंख्या में तीव्र वृद्धि से वस्तुओं की माँग लगातार बढ़ी है, किन्तु उत्पादन में उसी गति से वृद्धि नहीं हो पायी है। परिणामस्वरूप कीमतों में बड़ी तेजी से वृद्धि हुई है, जिससे सामान्य जनता को अनेक कष्ट उठाने पड़ रहे हैं।

5. कृषि विकास में बाधा – जनसंख्या में तीव्र वृद्धि के कारण भूमि पर जनसंख्या का भार और परिवारों के बड़े होने के कारण भूमि को उपविभाजन बढ़ता ही जा रहा है, जिससे खेतों का आकार छोटा तथा अनार्थिक होता जा रहा है। भूमिहीन किसानों की संख्या बढ़ रही है। साथ ही कृषि में छिपी हुई बेरोजगारी की समस्या भी प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।

6. बचत तथा पूँजी-निर्माण में कमी – जनसंख्या-वृद्धि के कारण बेरोजगार युवकों तथा बच्चों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। कमाने वाले लोगों को अपनी आय का एक बड़ा भाग बच्चों के पालन-पोषण पर खर्च करना पड़ता है। इससे बचत घटती है, जिसका पूँजी-निर्माण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। फलतः पूँजी की कमी के कारण विकास-योजनाएँ भी पूरी नहीं हो पातीं।

7. जनोपयोगी सेवाओं पर अधिक व्यय – जनसंख्या में तीव्र वृद्धि के कारण सरकार को उनकी आधारभूत आवश्यकताओं; जैसे–बिजली, परिवहन, चिकित्सा, शिक्षा, जल-आपूर्ति, भवन-निर्माण आदि पर लगातार अधिक धनराशि व्यय करनी पड़ती है।

8. अपराधों में वृद्धि – बेरोजगार लोगों की वृद्धि के कारण देश में चोरी, डकैती, अपहरण, राहजनी, हत्या आदि अपराधों में वृद्धि हो जाती है। सरकार को समाज में कानून तथा व्यवस्था बनाये रखने के लिए सुरक्षा पर अधिक धनराशि व्यय करनी पड़ती है। इससे सरकार पर बोझ बढ़ जाता है।

9. शहरी समस्याओं में वृद्धि – जनसंख्या में तीव्र वृद्धि के कारण लोग रोजगार पाने के लिए गाँवों को छोड़कर शहरों में आ रहे हैं, जिससे शहरों की जनसंख्या में तेजी से वृद्धि हुई है। इससे शहरों में भीड़-भाड़, मकानों की कमी, गन्दगी व प्रदूषण, वेश्यावृत्ति आदि समस्याएँ तथा बुराइयाँ बढ़ती जा रही हैं।



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