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सामाजिक विघटन की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए इसके प्रमुख प्रकार बताइए।यासामाजिक विघटन क्या है? इसके प्रमुख स्वरूपों की विवेचना कीजिए।

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सामाजिक विघटन की अवधारणा

प्रत्येक समाज की संरचना में बहुत-से छोटे-बड़े समूहों, संस्थाओं तथा सदस्यों की अन्तक्रियाओं का योगदान रहता है। इनमें से प्रत्येक समूह तथा संस्था के अपने-अपने कुछ पूर्व-निर्धारित प्रकार्य होते हैं। यह प्रकार्य व्यक्ति को अपनी स्थिति के अनुरूप भूमिका निभाने की प्रेरणा ही नहीं देते बल्कि सामाजिक व्यवस्था की उपयोगिता को भी बनाये रखते हैं। किन्हीं विशेष परिस्थितियों में जब सामाजिक संरचना इस तरह टूट जाती है कि इसकी एक इकाई दूसरी की पूरक नहीं रह जाती, अथवा उसके कार्यों में बाधा डालने लगती है तो सामाजिक व्यवस्था में असन्तुलन उत्पन्न हो जाता है। यही स्थिति सामाजिक विघटन की स्थिति होती है। अध्ययन की सरलता के लिए इस स्थिति को एक उदाहरण की सहायता से समझा जा सकता है। प्राणी की शरीर-रचना सावयवी व्यवस्था का एक सुन्दर उदाहरण है। इस व्यवस्था का निर्माण अनेक छोटे-बड़े अंगों, नाड़ी-व्यवस्था, रक्त संचालन तथा चयापचय की प्रक्रिया के द्वारा होता है। सावयवी व्यवस्था के अन्तर्गत इनमें से कोई भी इकाई यदि अपना कार्य करना बन्द कर दे अथवा दूसरे अंगों की क्रियाशीलता को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करने लगे तो सम्पूर्ण शरीर अस्वस्थ हो जाता है। इस स्थिति को हम सावयवी विघटन कहते हैं।

सामाजिक विघटन क्या है?

प्रत्येक समाज में व्यवस्था एवं संगठन पाया जाता है। सभी समाजों में व्यक्ति अपने पूर्व-निश्चित पदों के अनुरूप भूमिका निभाते हैं, नियन्त्रण की व्यवस्था का पालन करते हैं और उद्देश्यों में साम्यता एवं एकमत्य पाया जाता है, किन्तु नवीन परिवर्तनों एवं अन्य कारणों से जब समाज की एकता नष्ट होने लगती है, नियन्त्रण व्यवस्था शिथिल होने लगती है, समाज में तनाव और संघर्ष बढ़ जाता है, लोगों में निराशा बढ़ जाती है और पारस्परिक अविश्वास पैदा हो जाता है, समाज में अस्थिरता और विकृतियाँ उत्पन्न हो जाती हैं, तब सामूहिक जीवन नष्ट होने लगता है, तो इस स्थिति को हम सामाजिक विघटन कहते हैं। सामाजिक विघटन सामाजिक संगठन की विपरीत स्थिति है। अन्य शब्दों में, सामाजिक विघटन का तात्पर्य व्यवस्था के टूट जाने अथवा सामाजिक संरचना के विभिन्न भागों में एकता के अभाव से है।

सामाजिक विघटन के प्रकार अथवा स्वरूप

सामाजिक विघटन के प्रकार या स्वरूप निम्नलिखित होते हैं

1. वैयक्तिक विघटन-वैयक्तिक विघटन में व्यक्ति विशेष का विघटन होता है। इसके अन्तर्गत बाल-अपराध, युवा अपराध, पागलपन, मद्यपान, वेश्यावृत्ति, आत्महत्या आदि की समस्याओं को सम्मिलित किया जाता है। यदि किसी समाज में वैयक्तिक विघटन की दर बढ़ जाती है तो वह समाज भी विघटित होने लगता है।

2. पारिवारिक विघटन-जब पति-पत्नी और परिवार के अन्य लोगों के सम्बन्धों में तनाव चरम सीमा पर पहुँच जाता है तो पारिवारिक विघटन आरम्भ हो जाता है। पारिवारिक विघटन में तलाक, अनुशासनहीनता, गृहकलह, पृथक्करण आदि समस्याओं का समावेश होता है। ये समस्याएँ परिवार के स्वरूप एवं विघटन को ही बल देती हैं।

3. सामुदायिक विघटन-जब सम्पूर्ण समुदाय में विघटन की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है तो वह सामुदायिक विघटन कहलाता है। सामुदायिक विघटन में बेकारी, निर्धनता, राजनीतिक भ्रष्टाचार तथा अत्याचार जैसी समस्याओं का समावेश रहता है।

4. अन्तर्राष्ट्रीय विघटन-जब अन्तर्राष्ट्रीय नियमों के विरुद्ध राष्ट्र आचरण करने लगते हैं तो अन्तर्राष्ट्रीय विघटन प्रारम्भ हो जाता है। बड़े एवं शक्तिशाली राष्ट्र, छोटे एवं कमजोर राष्ट्रों को हड़पने का प्रयास करने लगते हैं। साम्राज्यवाद, क्रान्ति, आक्रमण, युद्ध तथा सर्वाधिकारवाद इसके उदाहरण हैं।



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