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‘पहले त्याग द्वारा आनंद की प्राप्ति होती थी पर अब भोगने के बाद फेंक देना’ – मूल मंत्र हो गया है । |
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Answer» त्याग और भोग एक-दूसरे के विपरीतार्थक शब्द हैं। पहले हमारे देश में त्याग की भावना प्रमुख थी। हमारे देश के महापुरुषों ने त्याग का मार्ग अपनाया था और उन्होंने देश और समाज के लिए अपना सारा जीवन समर्पित कर दिया था और अपना सर्वस्व त्याग दिया था। |
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