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महादेवी वर्मा की जीवनी पर प्रकाश डालते हुए उनकी रचनाओं का उल्लेख कीजिए।याकवयित्री महादेवी वर्मा का जीवन-परिचय दीजिए एवं उनकी किसी एक रचना का नाम लिखिए।

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श्रीमती महादेवी वर्मा का नाम लेते ही भारतीय नारी की शालीनता, गम्भीरता, आस्था, साधना और कलाप्रियता साकार हो उठती है। महादेवी जी का मुख्य क्षेत्र काव्य है। छायावादी कवियों (पन्त, निराला, प्रसाद, महादेवी) की वृहत् कवि-चतुष्टयी में इनकी गणना होती है। इनकी कविताओं में वेदना की प्रधानता है। इन्हें आधुनिक युग की मीरा कहा जाता है।

जीवन-परिचय–श्रीमती महादेवी वर्मा का जन्म उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जनपद में सन् 1907 ई० में होलिकोत्सव के दिन हुआ था। इनके पिता गोविन्दप्रसाद वर्मा भागलपुर के एक कॉलेज में प्रधानाचार्य और माता हेमरानी विदुषी और धार्मिक स्वभाव की महिला थीं। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा इन्दौर में और उच्च शिक्षा प्रयाग में हुई थी। संस्कृत में एम० ए० उत्तीर्ण करने के बाद ये प्रयाग महिला विद्यापीठ में प्राचार्या हो गयीं। इनका विवाह छोटी आयु में ही हो गया था। इनके पति डॉक्टर थे। वैचारिक साम्य न होने के कारण ये अपने पति से अलग रहती थीं। कुछ समय तक इन्होंने ‘चाँद’ पत्रिका  का सम्पादन किया। इनके जीवन पर महात्मा गाँधी का तथा साहित्य-साधना पर रवीन्द्रनाथ टैगोर का विशेष प्रभाव पड़ा। इन्होंने नारी-स्वातन्त्र्य के लिए सदैव संघर्ष किया और अधिकारों की रक्षा के लिए नारी.का शिक्षित होना आवश्यक बताया। कुछ वर्षों तक ये उत्तर प्रदेश विधान परिषद् की मनोनीत सदस्या भी रहीं। इनकी साहित्य-सेवाओं के लिए राष्ट्रपति ने इन्हें ‘पद्मभूषण’ की उपाधि से अलंकृत किया। ‘सेकसरिया’ एवं ‘मंगलाप्रसाद’ पारितोषिक से भी इन्हें सम्मानित किया गया। उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा 18 मई, 1983 ई० को इन्हें हिन्दी की सर्वश्रेष्ठ कवयित्री के रूप में भारत-भारती’ पुरस्कार प्रदान करके सम्मानित किया गया। 28 नवम्बर, 1983 ई० को इन्हें इनकी अप्रतिम गीतात्मक काव्यकृति ‘यामा’ पर ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान कर सम्मानित किया गया। ये प्रयाग में ही रहकर जीवनपर्यन्त साहित्य-साधना करती रहीं। 11 सितम्बर, 1987 ई० को ये इस असार-संसार से विदा हो गयीं। यद्यपि आज ये हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन इनके गीत काव्य-प्रेमियों के मानस-पटल पर सदैव विराजमान रहेंगे।

रचनाएँ-महादेवी वर्मा की प्रमुख काव्य-कृतियाँ निम्नलिखित हैं

(1) नीहार—यह महादेवी वर्मा का प्रथम काव्य-संग्रह है। इसमें 47 गीत संकलित हैं। इसमें वेदना तथा करुणा का प्राधान्य है। यह भावमय गीतों का संग्रह है।

(2) रश्मि—इसमें दार्शनिक, आध्यात्मिक और रहस्यवादी 35 कविताएँ संकलित हैं।

(3) नीरजा-यह 58 गीतों का संग्रह है। इसमें संगृहीत अधिकांश गीतों में विरह से उत्पन्न प्रेम का सुन्दर चित्रण हुआ है। कुछ गीतों में प्रकृति के मनोरम चित्रों के अंकन भी हैं।

(4) सान्ध्यगीत-इसमें 54 गीत हैं। इस संकलन के गीतों में परमात्मा से मिलन का आनन्दमय चित्रण है।

(5) दीपशिखा—यह रहस्य-भावना और आध्यात्मिकता से पूर्ण 51 भावात्मक  गीतों का संकलन है। इस संग्रह के अधिकांश गीत दीपक पर लिखे गये हैं, जो आत्मा का प्रतीक है।
इनके अतिरिक्त सप्तपर्णा, यामा, सन्धिनी एवं आधुनिक कवि नामक इनके गीतों के संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। ‘प्रथम आयाम’, ‘अग्निरेखा’, ‘परिक्रमा’ आदि इनकी प्रमुख काव्य-रचनाएँ हैं। ‘अतीत के चलचित्र’, ‘स्मृति की रेखाएँ’, ‘श्रृंखला की कड़ियाँ’, ‘पथ के साथी’, ‘क्षणदा’, ‘साहित्यकार की आस्था तथा अन्य निबन्ध’, ‘संकल्पिता’, ‘मेरा परिवार’, ‘चिन्तन के क्षण’ आदि आपकी प्रसिद्ध मद्य रचनाएँ हैं।

साहित्य में स्थान-हिन्दी-साहित्य में महादेवी जी का विशिष्ट स्थान है। इन्होंने गद्य और पद्य दोनों में सृजन कर हिन्दी की अपूर्व सेवा की है। मीरा के बाद आप अकेली ऐसी महिला रचनाकार हैं, जिन्होंने ख्याति के शिखर को छुआ है। इनके गीत अपनी अनुपम अनुभूतियों और चित्रमयी व्यंजना के कारण हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधि हैं। कविवर सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला’ के शब्दों में–

हिन्दी के विशाल मन्दिर की वीणापाणि,
स्फूर्ति चेतना रचना की प्रतिभा कल्याणी ।



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