1.

“इस प्रकार का निंदक बड़ा दुःखी होता है।”

Answer»

प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य वैभव’ के ‘निन्दा रस’ नामक पाठ से लिया गया है। इसके लेखक हरिशंकर परसाई हैं। ।
संदर्भ : परसाई जी कहते हैं कि मिशनरी निंदकों के अलावा दूसरों की प्रगति से जलकर निंदा करने वाला वर्ग भी होता है।
स्पष्टीकरण : परसाई जी कहते हैं कि मिशनरी भाव से निन्दा करने वाले व्यक्तियों के अलावा एक और वर्ग होता है जो ईर्ष्या-द्वेष से प्रेरित निन्दा करता है। दूसरों की प्रगति से, कर्म से उसमें ईर्ष्या का भाव पैदा होता है। परसाई जी कहते हैं इस प्रकार का निन्दक बड़ा दुःखी होता है। वह ईर्ष्या-द्वेष से दिन-रात जलता रहता है। फिर वह दूसरों की निन्दा करके कुछ शान्ति का अनुभव करता है। ऐसा निन्दक बड़ा दयनीय होता है।



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