1.

दिए गए गद्यांशों को पढ़कर उन पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिखिए।ईर्ष्या-द्वेष से प्रेरित निन्दा भी होती है। लेकिन इसमें वह मजा नहीं जो मिशनरी भाव से निन्दा करने में आता है। इस प्रकार का निन्दक बड़ा दुखी होता है। ईष्र्या-द्वेष से चौबीसों घंटे जलता है और निन्दा का जल छिड़ककर कुछ शांति अनुभव करता है। ऐसा निन्दक बड़ा दयनीय होता है। अपनी अक्षमता से पीड़ित वह बेचारा दूसरे की सक्षमता के चाँद को देखकर सारी रात श्वान जैसा भौंकता है। ईर्ष्या-द्वेष से प्रेरित निन्दा करने वाले को कोई दण्ड देने की जरूरत नहीं है। वह निन्दक बेचारा स्वयं दण्डित होता है। आप चैन से सोइए और वह जलन के कारण सो नहीं पाता। उसे और क्या दण्ड चाहिए?(i) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।(iii) मिशनरी निन्दक शान्ति का अनुभव कब करता है?(iv) किस प्रकार के निन्दक को दण्ड देने की कोई जरूरत नहीं होती? कारण सहित उत्तर दीजिए।(v) अपनी अक्षमता से पीड़ित निन्दक दूसरे की सक्षमता के चाँद को देखकर कैसा व्यवहार करता है?

Answer»

(i) प्रस्तुत गद्यावतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘गद्य-गरिमा’ में संकलित तथा हिन्दी के प्रसिद्ध व्यंग्यकार श्री हरिशंकर परसाई द्वारा लिखित ‘निन्दा रस’ शीर्षक व्यंग्यात्मक निबन्ध से अवतरित है।
अथवा
पाठ का नाम–
 निन्दा रस।
लेखक का नाम-हरिशंकर परसाई।

(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-लेखक ने कहा है कि निन्दा ईष्र्या भाव से प्रेरित होती है और मिशनरी भाव से भी। मिशनरी भाव से की गयी निन्दा बिना किसी द्वेष-भाव के धर्म-प्रचार जैसे पुण्य कार्य की भावना से की जाती है। ईर्ष्या भाव से प्रेरित होकर निन्दा करने में वह आनन्द नहीं आता, जो मिशनरी भाव से प्रेरित होकर निन्दा करने में आता है।

(iii) मिशनरी निन्दक ईष्र्या-द्वेष से चौबीसों घण्टे जलता है और निन्दा का जल छिड़ककर कुछ शान्ति अनुभव करता है।

(iv) मिशनरी निन्दक को दण्ड देने की कोई जरूरत नहीं होती। कारण यह कि ऐसा निन्दक बेचारा स्वयं दण्डित होता है।

(v) अपनी अक्षमता से पीड़ित निन्दक दूसरे की सक्षमता को चाँद को देखकर सारी रात श्वान जैसा भौंकता है।



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