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“अद्भुत है मेरा मित्र। उनके पास दोषों का ‘केटलाग’ है।”

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प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य वैभव’ के ‘निन्दा रस’ नामक पाठ से लिया गया है। इसके लेखक हरिशंकर परसाई हैं।
संदर्भ : लेखक यहाँ निन्दक की निन्दा करने की क्षमता के बारे में बता रहे हैं।
स्पष्टीकरण : लेखक का एक मित्र निन्दा करने में माहिर है। वह अपनी ससुराल पिछले दिन आया हुआ है लेकिन लेखक को मिलते ही कहता है ‘अभी सुबह की गाड़ी से उतरा हूँ और तुमसे मिलने चला आया।’ उसने आते ही ‘ग’ की निन्दा आरंभ कर दी। लेखक तब कहता है, ‘अद्भुत है मेरा यह मित्र। उसके पास दोषों का ‘केटलाग’ है। मैंने जिसका भी नाम लिया उसको निन्दा की तलवार से काटता चला गया।



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