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. वर्षा ऋतु पर लिखी गई कविता ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ आपने अपनी पाठ्यपुस्तक में पढ़ी I इसी विषय पर लिखी गई अन्य कवियों की दो कविताएँ लिखिए I |
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Answer» िरि का गौरव गाकर झर- झरमद में नस -नस उत्तेजित करमोती की लड़ियों- से सुन्दरझरते हैं झाग भरे निर्झर ! गिरिवर के उर से उठ -उठ कर उच्चाकांक्षाओं से तरुवर है झाँक रहे नीरव नभ पर अनिमेष ,अटल कुछ चिंतापर। गिरि – पहाड़मद – मस्तीझग – फेनउर – हृदयउच्चांकाक्षा – ऊँच्चा उठने की कामनातरुवर -पेड़नीरव नभ शांत – शांत आकाशअनिमेष – एक टकप्रसंग –: प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श – भाग 2’ से लिया गया है। इसके कवि ‘सुमित्रानंदन पंत जी ‘हैं। इसमें कवि ने झरनों की सुंदरता का वर्णन किया है।parvatव्याख्या –: इस पद्यांश में कवि कहता है कि मोतियों की लड़ियों के समान सुंदर झरने झर झर की आवाज करते हुए बह रहे हैं ,ऐसा लग रहा है की वे पहाड़ों का गुणगान कर रहे हों। उनकी करतल ध्वनि नस नस में उत्साह अथवा प्रसन्नता भर देती है।पहाड़ों के हृदय से उठ-उठ कर अनेकों पेड़ ऊँच्चा उठने की इच्छा लिए एक टक दृष्टि से स्थिर हो कर शांत आकाश को इस तरह देख रहे हैं, मनो वो किसी चिंता में डूबे हुए हों। अर्थात वे हमें निरन्तर ऊँच्चा उठने की प्रेरणा दे रहे हैं।parvat उड़ गया ,अचानक लो ,भूधरफड़का अपार पारद * के पर !रव -शेष रह गए हैं निर्झर !है टूट पड़ा भू पर अम्बर ! धँस गए धारा में सभय शाल ! उठ रहा धुआँ ,जल गया ताल ! -यों जलद -यान में विचर -विचर था इंद्र खेलता इंद्रजाल।भूधर – पहाड़पारद * के पर- पारे के समान धवल एवं चमकीले पंख रव -शेष – केवल आवाज का रह जानासभय – भय के साथशाल- एक वृक्ष का नामजलद -यान – बादल रूपी विमानविचर- घूमनाइंद्रजाल – जादूगरीप्रसंग :- प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श – भाग 2’ से लिया गया है। इसके कवि ‘सुमित्रानंदन पंत जी ‘हैं। इसमें कवि ने बारिश के कारण प्रकृति का बिल्कुल बदला हुआ रूप दर्शाया है।parvatव्याख्या :- इस पद्यांश में कवि कहता है कि तेज बारिश के बाद मौसम ऐसा हो गया है कि घनी धुंध के कारण लग रहा है मानो पेड़ कही उड़ गए हों अर्थात गायब हो गए हों। ऐसा लग रहा है कि पूरा आकाश ही धरती पर आ गया हो केवल झरने की आवाज़ ही सुनाई दे रही है। प्रकृति का ऐसा भयानक रूप देख कर शाल के पेड़ डर कर धरती के अंदर धंस गए हैं। चारों ओर धुँआ होने के कारण लग रहा है कि तालाब में आग लग गई है। ऐसा लग रहा है कि ऐसे मौसम में इंद्र भी अपना बादल रूपी विमान ले कर इधर उधर जादू का खेल दिखता हुआ घूम रहा है। :-1-: है टूट पड़ा भू पर अम्बर !भाव-: घनी धुंध के कारण लग रहा है मानो पूरा आकाश ही धरती पर आ गया हो केवल झरने की आवाज़ ही सुनाई दे रही है। 2-:-यों जलद -यान में विचर -विचर था इंद्र खेलता इंद्रजाल।भाव-: चारों और धुँआ होने के कारण लग रहा है कि इंद्र भी अपना बादल रूपी विमान ले कर इधर उधर जादू का खेल दिखता हुआ घूम रहा है। 3-: गिरिवर के उर से उठ -उठ कर उच्चाकांक्षाओं से तरुवर है झाँक रहे नीरव नभ पर अनिमेष ,अटल कुछ चिंतापर। भाव-: पहाड़ों के हृदय से उठ-उठ कर अनेकों पेड़ ऊँच्चा उठने की इच्छा लिए एक टक दृष्टि से स्थिर हो कर शांत आकाश को इस तरह देख रहे हैं मनो वो किसी चिंता में डूबे हुए हों। अर्थात वे हमें निरन्तर ऊँच्चा उठने की प्रेरणा दे रहे हैं। ये वृक्ष मनुष्यों की सदा ऊपर उठने और आगे बढ़ने की और संकेत कर रहे हैं। कविता का सौन्दर्य1-: इस कविता में मानवीकरण अलंकार का प्रयोग किस प्रकार किया गया है ? स्पष्ट कीजिए।उत्तर-: इस कविता में मानवीकरण अलंकार का प्रयोग जगह जगह किया गया है जिसके कारण प्राकृति सजीव प्रतीत हो रही है। जैसे – पहाड़ अपनी हजार पुष्प रूपी आंखें फाड़ कर नीचे जल में अपने विशाल आकार को देख रहे हैं। और पहाड़ों के हृदय से उठ-उठ कर अनेकों पेड़ ऊँच्चा उठने की इच्छा लिए एक टक दृष्टि से स्थिर हो कर शांत आकाश को इस तरह देख रहे हैं मनो वो किसी चिंता में डूबे हुए हों। 2-: आपकी दृष्टि में इस कविता का सौन्दर्य इसमें से किस पर निर्भर करता है ?(क ) अनेक शब्दों की आवृति पर(ख ) शब्दों की चित्रमयी भाषा पर(ग ) कविता की संगीतात्मकता परउत्तर- (ख) शब्दों की चित्रमयी भाषा परक्योंकि इस कविता में चित्रात्मक शैली का प्रयोग करते हुए प्रकृति का सुंदर और सजीव वर्णन किया गया है। 3-: कवि ने चित्रात्मक शैली का प्रयोग करते हुए पावस ऋतु का सजीव चित्र अंकित किया है ऐसे स्थलों को छाँट कर लिखिए।उत्तर-:1- अपने सहस्र दृग- सुमन फाड़, अवलोक रहा है बार बार , 2- गिरि का गौरव गाकर झर- झर 3- धँस गए धारा में सभय शाल ! 4- गिरिवर के उर से उठ -उठ कर उच्चाकांक्षाओं से तरुवर है झाँक रहे नीरव नभ पर अनिमेष ,अटल कुछ चिंतापर। ××××××××××××××××××××××××××××Answer By SHREYAS |
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