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वनों के संरक्षण हेतु कुछ सुझाव प्रस्तुत कीजिए।यावन संरक्षण के लिए कोई दो सुझाव दीजिए।

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भारत में वनों को संरक्षण देने एवं उन्हें विकसित करने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिये जा सकते हैं

1. वन-क्षेत्रों का विकास – वन व्यवसाय की उन्नति के लिए अधिक आवश्यक कार्य वन-क्षेत्र का विस्तार करना है। राष्ट्रीय वन-नीति के अनुसार देश के एक-तिहाई भाग तक वन विस्तार की परियोजना अपनायी जानी चाहिए। किन्तु इस दशा में सफलता नहीं मिली है। वृक्षारोपण कार्य को गति दी जानी चाहिए जिससे इस उद्देश्य की पूर्ति हो सके।
2. वनों का उचित दोहन – पिछले तीन दशकों में 43 लाख हेक्टेयर भूमि से वनों का सफाया किया जा चुका है। वनों के अनुचित दोहन को रोकने के लिए निम्नलिखित उपाय किये जाने चाहिए
⦁    सरकार को वनों के संरक्षण पर ध्यान देना चाहिए।
⦁    वनों पर सरकारी नियन्त्रण कठोर होना चाहिए।
⦁    वन अधिकारियों को भली प्रकार प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।
⦁    वनों के अन्धाधुन्ध कटने पर पूर्णत: रोक लगा देनी चाहिए एवं उस पर सख्ती से अमल करना चाहिए।
3. वन-क्षेत्रों में परिवहन की सुविधाएँ जुटाना – भारतीय वन ऊँचे एवं दुर्गम क्षेत्रों में हैं, परन्तु यातायात की सुविधा न होने के कारण उनका दोहन सम्भव नहीं है। वन-क्षेत्रों तक सस्ते और द्रुत साधनों की व्यवस्था की जानी चाहिए।
4. उद्योगों का विकास-वन – उद्योगों को प्रोत्साहित करने के लिए वनों से प्राप्त पदार्थों के उपयोग की समुचित व्यवस्था तथा उन वस्तुओं से सम्बन्धित उद्योगों का विकास किया जाना चाहिए। वन्य-पदार्थों का निर्यात विदेशों को किया जाए तथा पूँजीपतियों को इस उद्योग में अधिक-से-अधिक पूँजी लगाने के लिए प्रोत्साहित किया जाए।
5. वनों को काटने पर रोक – गाँवों एवं वन-क्षेत्रों के निकटवर्ती भागों में लकड़ी को ईंधन के रूप में जलाकर नष्ट कर दिया जाता है। लकड़ी के इस अनुचित उपयोग को रोका जाना चाहिए, जिससे इसका उपयोग अधिक महत्त्वपूर्ण कार्यों में किया जा सके।
6. वन-सम्बन्धी शिक्षा तथा अनुसन्धान को प्रोत्साहन – वन व्यवसाय की उन्नति के लिए वन सम्बन्धी शिक्षा का प्रसार किया जाना चाहिए। व्यक्तियों को प्रशिक्षित करने के लिए वन विद्यालय खोले जाने चाहिए। वन सम्बन्धी शिक्षा देकर ही वनों को समाज के बीच लगाया या समृद्ध किया जा सकता है। सामाजिक वानिकी’ इसकी एक उदाहरण है।
7. वन महोत्सव – वनों को विनाश से बचाने के लिए भारत में 1952 ई० से वन महोत्सव कार्यक्रम का प्रारम्भ किया गया। इसके जन्मदाता भूतपूर्व केन्द्रीय कृषि मन्त्री श्री कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी थे। उनके शब्दों में, “वृक्षों का अर्थ है जल, जल का अर्थ है रोटी और रोटी ही जीवन है। सरकार द्वारा अपनी वन-नीति के आधार पर जुलाई, 1952 ई० से लगातार वन महोत्सव मनाना प्रारम्भ किया गया। इस कार्यक्रम के अन्तर्गत खेतों की मेंड़ों, नदियों एवं नहरों के किनारे, सड़क एवं रेलमार्गों के किनारे एवं सार्वजनिक स्थानों पर वृक्ष लगाए जाते हैं। आशा की जाती है कि इस कार्यक्रम से भारत के 33.33% क्षेत्रफल पर वनों का विस्तार होगा।
8. नवीन 20-सूत्री कार्यक्रम – नवीन 20-सूत्री कार्यक्रम के अन्तर्गत वृक्षारोपण एवं पेड़-पौधों की रक्षा का विशेष प्रावधान है। 1980-85 ई० में छठी पंचवर्षीय योजना के अन्तर्गत एक अरब रुपये के खर्चे से केन्द्रीय सरकार द्वारा एक नयी योजना का शुभारम्भ किया गया था ‘ग्रामीण ईंधन वृक्षारोपण सहित सामाजिक वृक्षारोपण।’ इस योजना में 100 जिलों में पेड़ लगाये गये तथा निम्नलिखित कार्यक्रमों को प्रधानता दी गयी
⦁    गाँव के आस-पास बेकार पड़ी भूमि पर वृक्षों को लगाना।
⦁     किसानों को खेतों की मेड़ पर पेड़ लगाने के लिए मुफ्त में पेड़ देना आदि।
इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए सुनियोजित नीति को अपनाये जाने के साथ-साथ जन-सहयोग भी आवश्यक है।



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