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विनम्रता मनुष्य का अनुभव है इस पर अपने विचार व्यक्त कीजिए

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विनम्रता मनुष्य के व्यक्तित्व का आभूषण है। इसके माध्यम से हमारा व्यक्तित्व खूबसूरत बनता है, क्योंकि विनम्र होकर ही हम पात्रता अर्जित कर सकते हैं। विनम्र होकर हम ग्रहण करना सीखते हैं और विनम्रता के कारण ही हम दूसरों से जुड़ पाते हैं। भारतीय संस्कृति में इसी विनम्रता को व्यक्त करने के लिए प्रणाम और अभिवादन करने की परंपरा है।

हमारे धर्मग्रंथों का एक मूलमंत्र है: जो नम्र होकर झुकते हैं, वही ऊपर उठते हैं। विनम्रता न केवल हमारे व्यक्तित्व में निखार लाती है, बल्कि कई बार सफलता का कारण भी बनती है। विनम्रता के कारण जो सम्मान मिलता है, उसका एक अलग महत्व है। मन की कोमलता और व्यवहार में विनम्रता एक बड़ी शक्ति है। इस शक्ति के कारण ही हम खुद पर और अन्यों पर काबू पा सकते हैं। इससे स्वाभाविक है कि जब हम खुद पर नियंत्रण पा लेते हैं तो इस कला से हम किसी को भी अपने नियंत्रण में कर सकते हैं, और खुद को व अन्यों को सुख दे सकते हैं।

विनम्रता मानव का श्रेष्ठ आभूषण है। विनम्रता हमारे दैनिक जीवन के व्यवहार का एक ऐसा मजबूत कवच है जिसको पहनकर हम किसी भी तरह की नकारात्मकता को अपने ऊपर हावी नहीं होने दे सकते हैं। विनम्रता अपनाने से मनुष्य के अंदर सद्गुणों का विकास होता है। विनम्र व्यक्ति शांत होते हैं अतः विनम्रता शांति का प्रतीक है। जो व्यक्ति स्वभाव से शांत होगा। वही विनम्र बन सकता है।

संसार में बड़े-बड़े जितने भी महापुरुष हुए हैं। उन्होंने अपने व्यवहार में विनम्रता को अपनाया तभी वो उच्च स्तर पर पहुंच पाए। अगर वह अपने स्वभाव में विनम्रता नहीं लाते तो शायद हम उनका नाम इतने आदर पूर्वक नहीं लेते। विनम्र व्यक्ति को सब पसंद करते हैं, गुस्सैल और अहंकारी व्यक्ति से सब दूर भागते हैं।

इतिहास में ऐसे अनेक उदाहरण भी हैं, जिन्होंने विनम्रता का परित्याग कर दिया। जिनमें अहंकार था और ये अहंकार उनके नाश का कारण बना। उदाहरण के लिए रावण, कंस, हिरण्यकश्यप, हिटलर आदि सब अहंकार के प्रतिनिधि थे। उन्होंने अपनी विनम्रता का त्याग कर दिया और अहंकार का दामन थाम लिया। जिसके कारण उनका नाश हुआ।

यदि कोई व्यक्ति प्रसिद्ध है, धनवान है, योग्य है, किसी विशेष क्षेत्र में सक्रिय है और उसके बाद विनम्र भी है तो कहना ही क्या। यह तो सोने पर सुहागा जैसी बात हो जाएगी। विनम्रता हमारे गुणों में चार चांद लगाती है। विनम्रता हमारे स्वभाव के लिए एक श्रंगार के समान है। जो हमारे स्वभाव और आचरण को निखार देती है। विनम्रता अहंकार का नाश करती है, और जहां अहंकार का नाश होता है वही ज्ञान की उत्पत्ति होती है। अतः लिए विनम्रता ज्ञान का द्वार है.



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