1.

संदर्भ व्याख्या कीजिए। तप नहीं केवल जीवन सत्य, करुण यह क्षणिक दिन अवसाद। तरुण आकांक्षा से हैं भरा, सो रहा आशा का आहलाद।।​

Answer»

हिमगिरि के उत्तुंग शिखर पर,बैठ शिला की शीतल छाँहएक पुरुष, भीगे नयनों सेदेख रहा था प्रलय प्रवाह ।नीचे जल था ऊपर हिम था,एक तरल था एक सघन,एक तत्व की ही प्रधानताकहो उसे जड़ या चेतन ।दूर दूर तक विस्तृत था हिमस्तब्ध उसी के हृदय समान,नीरवता-सी शिला-चरण सेटकराता फिरता पवमान ।तरूण तपस्वी-सा वह बैठासाधन करता सुर-श्मशान,नीचे प्रलय सिंधु लहरों काहोता था सकरुण अवसान।उसी तपस्वी-से लंबे थेदेवदारू दो चार खड़े,हुए हिम-धवल, जैसे पत्थरबनकर ठिठुरे रहे अड़े।अवयव की दृढ मांस-पेशियाँ,ऊर्जस्वित था वीर्य्य अपार,स्फीत शिरायें, स्वस्थ रक्त काहोता था जिनमें संचार।चिंता-कातर वदन हो रहापौरूष जिसमें ओत-प्रोत,उधर उपेक्षामय यौवन काबहता भीतर मधुमय स्रोत।बँधी महावट से नौका थीसूखे में अब पड़ी रही,उतर चला था वह जल-प्लावन,और निकलने लगी मही।निकल रही थी मर्म वेदनाकरुणा विकल कहानी सी,वहाँ अकेली प्रकृति सुन रही,हँसती-सी पहचानी-सी।"ओ चिंता की पहली रेखा,अरी विश्व-वन की व्याली,ज्वालामुखी स्फोट के भीषणप्रथम कंप-सी मतवाली।हे अभाव की चपल बालिके,री ललाट की खलखेलाहरी-भरी-सी दौड़-धूप,ओ जल-माया की चल-रेखा।इस ग्रहकक्षा की हलचल-री तरल गरल की लघु-लहरी,जरा अमर-जीवन की,और न कुछ सुनने वाली, बहरी।अरी व्याधि की सूत्र-धारिणी-अरी आधि, मधुमय अभिशापहृदय-गगन में धूमकेतु-सी,पुण्य-सृष्टि में सुंदर पाप।



Discussion

No Comment Found

Related InterviewSolutions