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संभाषण कुशलता पर माधव राव सप्रे के विचार स्पष्ट कीजिए

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ण कुशलता पर माधव राव सप्रे के विचार स्पष्ट कीजिए ? ✎... संभाषण कुशलता पर माधव राव सप्रे के विचार... संभाषण सम् और भाषण दो शब्दों से मिलकर बना है। सम् का अर्थ होता है, संयम और भाषण का अर्थ होता है बोलने की कला। इस तरह संभाषण का अर्थ संयम पूर्वक बोलने की कला से है। माधव राव सप्रे के अनुसार संभाषण करते समय निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए... भाषा की सरलता : माधव राव सपरे के अनुसार संभाषण की भाषा सरल एवं स्पष्ट होनी चाहिए जिससे सुनने वाला आसानी से समझ सके। भाषण में अत्याधिक कठिन शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। सच्चाई : संभाषण करते समय बातों में सच्चाई होनी चाहिए। बातें तथ्यपरक होनी चाहिए और उसमें सत्यता का समावेश होना चाहिए। अपनी बात को सही सिद्ध करने के लिए किसी झूठ या अनर्गल बात का सहारा नहीं लेना चाहिए। संभाषण समाज व समय की आवश्यकता के अनुकूल हो : जो भी संभाषण करें वह समाज और समय की आवश्यकता के अनुरूप होना चाहिए। समाज के नियमों के विरुद्ध कुछ भी नहीं बोलना चाहिए और ना ही इधर-उधर की बातें करनी चाहिए। आदर का भाव : संभाषण में आदर का भाव होना चाहिये। संबोधन करते समय बड़ों के प्रति आदर का भाव होना चाहिए तथा उन्हें सम्मानजनक शब्दों के माध्यम से संबोधित करना चाहिये जैसे महाशय, महोदय, महानुभाव आदि। छोटो के प्रति स्नेह का भा होना चाहिए। भाषा की शालीनता : संभाषण में भाषा की शालीनता और सभ्यता होनी चाहिए। किसी भी तरह के कठोर व अशालीन शब्दों का प्रयोग नही करना चाहिये। हमेशा ऐसे शब्दों का प्रयोग करें जो सबको अच्छे लगें।आनंदवर्धक शैली : संभाषण करते समय जो भी भाषा का प्रयोग किया जाये वो आनंनदायक होनी चाहिये। भाषा ऐसी मधुर एवं विनम्र होनी चाहिये कि सुनने वाले को उसमें रस और आनंंद आ जाये। ○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○



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