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Push ki raat kahani kisan ke se majduri banane ki kahani siddh kijiye

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कहानी सम्राट प्रेमचंद की कहानियां आम आदमी के दु:ख-दर्द की क्रूर कहानियां हैं। विकट परिस्थितियों में फंसे पात्र निरंतर शोषण की चक्‍की में पिसते हैं। बीच-बीच में विद्रोह की चिंगारियां भी भड़कती हैं। कभी ये चिंगारियां चरित्रों के अस्‍फुट स्‍वर के रूप में उभरती हैं, तो कभी लेखक का स्‍वर भी अस्‍फुट हो उठता है। किसान-मजदूरों की अभिशप्‍त नियति को दर्शाती अनेक कहानियां प्रेमचंद ने लिखी हैं परन्‍तु ‘पूस की रात’ आर्थिकता की दृष्टि से श्रेष्‍ठ कहानियों में परिगणित की जाएगी।हल्‍कू ने एक-एक पैसा बचाकर तीन रुपये इकट्ठे किये थे ताकि माघ-पूस की ठंड में बचने के लिए कंबल खरीद सके परन्‍तु साहूकार सिर पर आ खड़ा होता है तथा ब्‍याज मांगता है। हल्‍कू की पत्‍नी मुन्‍नी भुनभुनाती है कि वे तो साहूकार की ‘बाकी’ चुकाते-चुकाते ही मर जाएंगे। उसके ये शब्‍द किसान की विवशता को रेखांकित करते हैं – ‘मैं कहती हूं, तुम क्‍यों नहीं, खेती छोड़ देते ?’ मर-मर कर काम करो, उपज हो तो बाकी दे दो, चलो छुट्टी हुई। बाकी चुकाने के लिए ही हमारा जन्‍म हुआ है। पेट के लिए मजूरी करो। ऐसी खेती से बाज आए। मैं रुपये न दूंगी – न दूंगी।’’ फिर यह सोचकर वह पैसे देती है कि रुपये न देने की स्थिति में साहूकार सहना उसके पति को गाली देगा, जो उससे सहन न होगा।पूस की अंधेरी रात में हल्‍कू अपने खेत की रखवाली के लिए बांस के खटोले पर बैठा है। ठण्‍ड है कि उसकी हड्डि‍यां कड़कड़ा रही हैं। उसका साथी जबरा भी बैठा कूं-कूं कर रहा है। उसे भी ठंड लग रही है। हल्‍कू निरीह जानवर से बतियाता है। कभी उसे न आने का परामर्श देता है तो कभी उसे अपने घुटनों में ले लेता है। दोनों को एक-दूसरे की गर्मी महसूस होती है। हल्‍कू बार-बार चि‍लम भरता है। शायद इससे ठण्‍ड हट जाए परन्‍तु यह तो क्षणिक राहत देती है। फिर वह पत्ते इकट्ठे करके अलाव सेंकता है, खेत से थोड़ा हटकर। उससे गर्मी मिलती है... फिर कुत्ते के भौंकने से उसे लगता है कि कुछ जानवर उसके खेत में घुस गए हैं…नीलगाय खेत चर रही हैं। वह उठना चाहता है परन्‍तु आग की गर्मी उसे उठने नहीं देती... वह वहीं सो जाता है। कुत्ता रात भर भौंकता रहता है ... फिर जबरा भी थककर लेट जाता है। प्रात: मुन्‍नी आई तो हल्‍कू को उठाया और बताया कि पशु सारा खेत चर गए हैं। हल्‍कू ने पेट दर्द का बहाना बनाया और कहा – वह तो मरते-मरते बचा । मुन्‍नी ने चिंता जतायी – अब मजूरी करके माल गुजारी करनी पड़ेगी। हल्‍कू ने कहा – अब रात को ठण्‍ड में सोना तो न पड़ेगा।‘पूस की रात’ निर्धन किसान की विपन्‍नता एवं विपन्‍नता से उपजी उपेक्षा की कहानी है।mark as BRAINLIST



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