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पेड़ की आत्मकथा |
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Answer» पेड़ की आत्मकथा मै एक पेड़ हूँ बड़ा-सा नीम का पेड़। मै यहाँ चलती-फिरती दुनिया के बीच खड़ा हूँ। मेरे तने मै असंख्य शाखाएँ है, जिन पर करोड़ो पत्तियाँ लहलहा रही है। बसन्त ऋतु आते ही मै भी मौसम के साथ लहलहा उठता हूँ। आज भी मुझे वह दिन याद है जब एक छोटे से बच्चे ने मुझे मिटटी में रोपा था तब मेरे अस्तित्व को नन्हे बच्चे ने कभी धूप, कभी हवा के थपेड़ो से व कभी बारिश के पानी से बचाया। इन सबसे बचता-बचता धीरे-धीरे में बड़ा हुआ। आज भी मुझे वह दिन याद है जब में और मेरे दोश्त छोटे हुआ करते थे। जरा से वक्त के थपेड़ो से हम घबरा जाते थे व इधर-उधर देखने लगते थे। धीरे-धीरे इन्ही मुश्किलों का सामना करते हुए में आज एक विशाल पेड़ का रूप ले चुका हूँ। जिन थपेड़ो से कभी में बचता था आज उन्ही से में लोगो को बचाता हूँ व गर्व से फूल जाता हूँ। मेरे अन्दर की ऑक्सीजन जीवनदायिनी है। आज में पूरा का पूरा sbke काम आता हूँ, prantu दुख तो मुझे तब होता है जब कोई कुल्हाड़ी लेकर मेरे साथियो को मुझसे जुदा करने आता है, अरे हम भी तो तुम्हारे मित्र है। हम हर पल तुम्हारी सहायता के लिए तैयार रहते है फिर हमसे इतना बुरा बर्ताव क्यों ? तब कोई पथिक थककर मेरी छाँव में सोता है तो मुझे उसे लोरी रूप ठण्डी हवा देने में सुकून मिलता है। मेरे साथी नन्हे-नन्हे पक्षी भी तो है यदि वे न हो तो शायद सुख-दुःख मुझे पता ही न चले। आज में मनुष्य के इतने काम आकर अपने को धन्य मान रहा हूँ, परन्तु सबसे एक ही विनती करता हूँ कि हमे मत कटो-हमे बचाओं क्योकि सत्य ही है- वृक्ष ही जीवन है.................................. |
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