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Answer» मूलवासी से आशय संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार मूलवासी ऐसे लोगों के वंशज हैं जो किसी मौजूदा देश में बहत दिनों से रहते चले आ रहे हैं। फिर किसी अन्य संस्कृति या जातीय मूल के लोग विश्व के दूसरे हिस्से से उस देश में आए और इन लोगों को अपने अधीन बना लिया। ये मूलवासी आज भी सम्बन्धित देश की संस्थाओं के अनुरूप आचरण करने से अधिक अपनी परम्परा, सांस्कृतिक रीति-रिवाज एवं अपने विशेष सामाजिक-आर्थिक तौर-तरीकों पर जीवन-यापन करना पसन्द करते हैं। मूलवासियों का अपने अधिकारों के लिए संघर्ष एवं आन्दोलन भारत सहित वर्तमान विश्व में मूलवासियों की जनसंख्या लगभग 30 करोड़ है। दूसरे सामाजिक आन्दोलनों की तरह मूलवासी भी अपने संघर्ष, एजेण्डा और अधिकारों की आवाज उठाते रहे जिनका विवरण निम्नानुसार हैं- 1. विश्व समुदाय में बराबरी का दर्जा पाने के लिए आन्दोलन-मूलवासियों को एक लम्बे समय से सभ्य समाज में दोयम दर्जे का माना जाता था। उन्हें बराबरी का दर्जा प्राप्त नहीं था। वर्तमान विश्व में शेष जनसमुदाय के अपने प्रति निम्न स्तर के व्यवहार को देखकर इन्होंने विश्व समुदाय में बराबरी का दर्जा पाने के लिए अपनी आवाज बुलन्द की है। 2. स्वतन्त्र पहचान की माँग-मूलवासियों के निवास स्थान मध्य एवं दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका, दक्षिण-पूर्व एशिया एवं भारत में हैं, जहाँ इन्हें आदिवासी या जनजाति कहा जाता है। ऑस्ट्रेलिया तथा न्यूजीलैण्ड सहित ओसियाना क्षेत्र के बहुत-से द्वीपीय देशों में हजारों वर्षों से पॉलिनेशिया, मैलनेशिया एवं माइक्रोनेशिया वंश के मूलवासी निवासरत् हैं। इन मूलवासियों की अपने देश की सरकारों से माँग है कि इन्हें मूलवासी के रूप में अपनी स्वतन्त्र पहचान रखने वाला समुदाय माना जाए। 3. मूलवास स्थान पर अपने अधिकार की माँग-मूलवासी अपने मूलवास स्थान पर अपना अधिकार चाहते हैं। अपने मूलवास स्थान पर अपने अधिकार की माँग हेतु सम्पूर्ण विश्व के मूलवासी यह कहते हैं कि हम यहाँ अनन्त काल से निवास करते चले आ रहे हैं। 4. राजनीतिक स्वतन्त्रता की माँग–भौगोलिक रूप से चाहे मूलवासी अलग-अलग स्थानों पर निवास कर रहे हैं, लेकिन भूमि और उस पर आधारित जीवन प्रणालियों के बारे में इनकी विश्व दृष्टि एक-समान है। भूमि की हानि का इनके लिए अर्थ है-आर्थिक संसाधनों के एक आधार की हानि और यह मूलवासियों के जीवन के लिए बहुत बड़ा खतरा है। उस राजनीतिक स्वतन्त्रता का क्या अर्थ जो जीवन-यापन के साधन ही उपलब्ध न कराए। अत: मूलवासी अपने निवास स्थान पर उपलब्ध संसाधनों पर अपना अधिकार मानते हुए जीवन-यापन के साधन उपलब्ध कराने की मांग कर रहे हैं। मूलवासियों के अधिकारों के वैश्विक प्रयास- मूलवासियों के अधिकारों के लिए वैश्विक स्तर पर निम्नलिखित प्रयास हए हैं- ⦁ 1970 के दशक में विश्व के विभिन्न भागों में मूलवासियों के प्रतिनिधियों के मध्य सम्पर्क बढ़ा है। इससे इनके साझे अनुभवों एवं सरोकारों को एक आधार मिला है। ⦁ सन् 1995 में मूलवासियों से सम्बन्धित ‘वर्ल्ड काउंसिल ऑफ इण्डिजिनस पीपल’ का गठन हुआ। संयुक्त राष्ट्र संघ ने सर्वप्रथम इस परिषद् को परामर्शदायी परिषद् का दर्जा प्रदान किया। इसके अलावा आदिवासियों के सरोकारों से सम्बद्ध 10 अन्य स्वयंसेवी संगठनों को भी यह दर्जा प्रदान किया गया है।
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