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मञ्जूषात: अव्ययपदानि चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत- सहसा दूरे क्रमश: यदा तदा परन्तु यदि तर्हि एकस्मिन् वने कश्चन व्याध: जालं विस्तीर्य -------------------- स्थित:। -------------------- आकाशे सपरिवार: कपोतराज: चित्रग्रीव: निर्गत:। -------------------- तण्डुलकणानामुपरि कपोतानां लोभो जात:। -------------------- राजा तत्र सहमत: नासीत्। तस्य युक्ति: आसीत् -------------------- निर्जने वने कोऽपि मनुष्यो नास्ति -------------------- कुतो वा तण्डुलकणानां सम्भव:? -------------------- राज्ञ: उपदेशमस्वीकृत्य ते नीचै: आगता, -------------------- जाले निपतिता:। अत: उक्तम् '-------------------- विदधीत न क्रियाम्'। |
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Answer» मञ्जूषात:
एकस्मिन्
विदधीत
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