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मनुष्य के पेय और खाद्य पदार्थों में जितनी रहस्यपूर्ण, लोकप्रिय और सर्वव्यापी चाय है, उतनी और कोई वस्तु नहीं। विश्व के सभी देशों ने आज चाय को अपना लिया है। चाय का सबसे बड़ा सम्मान जापान में होता है। वहाँ के सामाजिक जीवन में चाय को उच्च पद दिया गया है। जापान में चाय बनाने व पीने और पिलाने का कमरा अलग होता है। उस कमरे को वे 'चा-सेको' कहते हैं और चाय पीने-पिलाने की विधि अथवा व्यवस्था को वे 'चा-यो-न' कहते हैं। इसका अर्थ होता है 'चाय का गरम पानी' यह कहना अतिशयोक्ति न होगा कि जैसे हिंदू मूर्तिपूजक हैं वैसे ही जापानी चाय उपासका जापानियों के बाद चाय पीने वालों की संख्या तिज्वतियों में अधिक पाई जाती है। भारत में आने पर कर प्लेट में उदलकर चाय पाना भले ही आज तिब्बती सीख गए हैं, लेकिन इसका पारंपरिक ढग अलग विशेषता लिए हुए है। तिब्बती दिनभर और खाने के साथ चाय के कई प्याले पीते हैं। चाय में मत्खन व नमक डालते है और यह खूब गाढ़ी होती है। उसमें सत् पुलला है। चाय की जन्मभूमि नि:सदह भारत ही है। यहाँ से चाय पहले पहल चीन में पहुंची। वहाँ से जापान और जापान से इलैंडा जापान में पहले पहल चाय को इंग्लैंड लाने वाला व्यक्ति 'विखम' है। उसने 27 जून सन् 1615 के अपने एक पर लिखा है कि उसने सर्वप्रथा चार जापान से मंगाई थी। h सारे जीवन में चाय का म्या स्थान है?हमारे जीवन में चाय का क्या स्थान है जापान देश में चाय की क्या विशेषता है तिब्बतियों की चाय की क्या विशेषताएं चाय का जन्म कहां हुआ था |
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Answer» जापान में चाय बनाने व पीने और पिलाने का कमरा अलग होता है। उस कमरे को वे 'चा-सेको' कहते हैं और चाय पीने-पिलाने की विधि अथवा व्यवस्था को वे 'चा-यो-न' कहते हैं। इसका अर्थ होता है 'चाय का गरम पानी' यह कहना अतिशयोक्ति न होगा चाय की जन्मभूमि नि:सदह भारत ही है। यहाँ से चाय पहले पहल चीन में पहुंची |
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