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क्ति को असीमित1. न्याय से आपका क्या अभिप्राय है? न्याय की विशेषताएं और मौलिक नियम लिखो।What do you mean by Justice? Write down its characteristics and basic postulat

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Justiceis the morally fair and right state of everything. To havejusticeas a person's character trait means that they are just and treat everyone the same, or how they would like to be treated.

न्याय व्यवस्था का मुख्य काम सिर्फ विवादों को सुलझाना नहीं होता बल्कि न्याय की रक्षा करना भी है। न्याय व्यवस्था कितनी प्रभावी है, इसका निर्धारण इसी आधार पर होता है कि वह किस हद तक न्याय की रक्षा कर पाता है।''

न्याय एक दार्शनिक शब्द है, लेकिन विधिक रूप में इसका अर्थ उस काम से लिया जाता है जो कानून और न्याय के हिसाब से सही हो। न्याय शब्द का प्रयोग मुख्य रूप से दो संदर्भो में किया जाता है। पहला, इससे मौजूदा कानून के वजूद की ईमानदार अनुभूति हो और दूसरा कानूनी कार्रवाई का गुण।

सैद्धांतिक रूप से ऐसा माना जाता है कि न्याय का विचार धनात्मक कानून के बोध के साथ आगे बढ़ता जाता है लेकिन जहां तक व्यवहार की बात है तो न्याय पर 'कानून के हिसाब से न्याय' की अवधारणा हावी हो जाती है। कानून में सुधार की प्रक्रिया से जुड़ते समय हमें तीन बातें अपने दिमाग में बैठा लेनी चाहिए कि यह सुधार गुणवत्तापूर्ण न्याय, तेजी से न्याय और गरीबों के लिए न्याय को ध्यान में रखकर होना चाहिए। सांविधानिक जनादेश को पूरा करने के लिए हमारे देश को इस क्षेत्र में साफ और प्रभावी सुधार की आवश्यकता है। यह आवश्यक है कि न्याय और कानून के संदर्भ में जनता के विश्वास को न सिर्फ बचाया जाए बल्कि उसे बढ़ाया भी जाए। जरूरी है कि न्याय देने की व्यवस्था मजबूत और प्रभावी हो। अंतरराष्ट्रीय अनुभव यह बताते हैं कि कानूनी संस्थाएं देश के विकास में काफी सहायक होती हैं। विश्व बैंक की रिपोर्ट भी एक देश के विकास और न्याय व्यवस्था में घनिष्ठ संबंधों की ओर इशारा करती है।

जस्टिस जेएस वर्मा, जस्टिस केजी बालाकृष्णन, जस्टिस एसबी सिन्हा, प्रोफेसर मोहन गोपाल, प्रोफेसर एन आर माधव मेनन, जस्टिस अशोक कुमार गांगुली, जस्टिस ए आर लक्ष्मणन और जस्टिस अरिजीत पसायत आदि ने न्याय में सुधार की दिशा में न सिर्फ सुझाव दिए बल्कि अपने निर्णयों द्वारा उस पर अमल भी किया। केंद्रीय विधि आयोग ने भी अपनी विभिन्न रिपोर्टो में न्यायिक सुधार की बात कही है। इसी मुद्दे को लेकर दैनिक जागरण भी एक 'जन जागरण' अभियान चला रहा है और मैं जागरण समूह का आभारी हूं कि उन्होंने इस अभियान से मुझे जोड़ा।

हम यह कह सकते हैं कि न्याय व्यवस्था का मुख्य काम सिर्फ विवादों को सुलझाना नहीं होता बल्कि न्याय की रक्षा करना भी होता है। न्याय व्यवस्था कितनी प्रभावी है इसका निर्धारण इसी आधार पर होता है कि वह किस हद तक न्याय की रक्षा कर पाता है। न्यायपालिका और उससे जुड़ा कोई भी सुधार इस भावना के साथ किया जाना चाहिए कि और प्रभावशाली ढंग से न्याय की रक्षा हो सके। प्रोफेसर मदन गोपाल के अनुसार न्यायिक सुधार के दौरान छह मुख्य बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए। यह बातें हैं-

1. कोर्ट की जिम्मेदारी और उसकी भूमिका

2. न्याय प्रणाली की संगठनात्मक क्षमता

3. जजों और वकीलों के कानून के ज्ञान का स्तर

4. न्याय प्रणाली

5. लोगों की प्रक्रिया

6. न्याय की पहुंच

उक्त छह बिंदु मुख्य रूप से तीन व्यापक विषयों से जुड़े हुए हैं। पहला, निर्णय की योग्यता को बढ़ाना। दूसरा, मानव संसाधन की योग्यता को बढ़ाना और तीसरा आधुनिक और प्रभावी व्यवस्था की स्थापना करना।

फास्ट ट्रैक कोर्ट, लोक अदालत, एडीआर, जजों के लिए मामलों की संख्या का निर्धारण, छुट्टियों की संख्या में कमी, कोर्ट की व्यवस्था के लिए आधुनिक तकनीक अपनाना यह कुछ ऐसे प्रयास हैं जो न्यायपालिका खुद अपने स्तर से सुधार के लिए कर सकती है। इसके अलावा ज्यादा बजट देकर, जजों की संख्या बढ़ाकर, वादी को मूलभूत सुविधाएं प्रदान करके भी न्याय व्यवस्था को प्रभावशाली बनाया जा सकता है। भारत के सभी नागरिक स्वतंत्र न्याय की इच्छा रखते हैं। स्वतंत्र शब्द से यहां तात्पर्य है यह सुनिश्चित करना कि सारे लोग कानून के शासन में सुरक्षित रहें, न्यायिक प्रक्रिया के दायरे में रहते हुए मानवाधिकार का पालन करें और कानून की निष्पक्ष पहुंच सभी लोगों तक हो।

हम निम्नलिखित मानकों के आधार पर यह पता लगा सकते हैं कि कहीं भी न्यायपालिका कितना प्रभावशाली है।

1. कोर्ट कितने लोगों की पहुंच में है।

2. लोगों में कोर्ट, वकील आदि का खर्च उठाने की योग्यता

3. कोर्ट की कार्यप्रणाली

4. जजों की संख्या और उनकी योग्यता

5. न्यायपालिका की स्वतंत्रता

6. न्यायिक जवाबदेही

7. अपीलों के नतीजों की संख्या और उसकी दर

8. कोर्ट की कार्यवाहियों के लिए वित्तपोषण की व्यवस्था

9. वकीलों की योग्यता

10. गैर न्यायिक कर्मचारियों की योग्यता

11. सूचना तकनीक का प्रयोग और आधारभूत संरचना

12. जजों और वकीलों की सहायता के लिए बौद्धिक स्तर पर आधारभूत संरचना

13. कोर्ट के निर्णय को लागू कराने वाली संस्थाओं की योग्यता

उक्त संकेतक एक न्यायपालिका को प्रभावी बनाने के लिए आवश्यक हैं। हालांकि सिर्फ इन्हीं से काम नहीं चलेगा क्योंकि यह न्याय की मूल भावना से नहीं जुड़े हैं।

इसके लिए आवश्यक है कि बहस, बातचीत और अनुभव बांटने की प्रक्रिया द्वारा एक प्रारूप बनाया जाए जिसमें वकीलों को भी शामिल किया जाए।

मैं जानता हूं कि सुधार एक लगातार चलने वाली प्रक्रिया है और आदर्श स्थिति को पाना काफी मुश्किल है। कोई सुझाव देना काफी आसान होता है जबकि उसको व्यवहार में लाना मुश्किल। हमें एक साथ मिलकर न्यायिक सुधार की प्रक्रिया में सहयोग देना चाहिए ताकि हमारी आने वाली पीढ़ी हमें ऐसे इंसानों के तौर पर याद करे जिन्होंने उनको एक स्वच्छ और व्यवस्थित समाज प्रदान किया।

न्याय की कुछ महत्वपूर्ण परिभाषाएँ हैं:

मिलर के अनुसार, “न्याय उन विशेष नैतिक मूल्यों का नाम है जो स्पष्ट रूप से मानव कल्याण से संबंधित हैं। जीवन दिशानिर्देश के अन्य सभी नियमों की तुलना में ऐसे मूल्य अधिक महत्वपूर्ण हैं।

मरियम की राय के अनुसार, 'न्याय मान्यताओं और विधियों की एक ही प्रणाली, जिसके माध्यम से व्यक्ति को कुछ दिया जाता है जिसमें एक अनुकूल समझौता होता है।

सल्मंड के विचार के अनुसार, 'न्याय का अर्थ है हर व्यक्ति को हिस्सा देना। न्यायमूर्ति (CHA R.C. Tucker) के अनुसार, "विरोधी विरोध या सिद्धांतों के बीच पर्याप्त समेलन बनाना न्याय का सारांश है।



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