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*"घड़ी के पुर्जे" पाठ का प्रतिपाद्य है: |
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Answer» इस निबंध का मूल प्रतिपाद्य यह है कि लेखक ने इस निबंध के माध्यम से धर्मचार्यों के दोहरे मापदंड पर व्यंग किया है। लेखक के स्पष्ट करना चाहता है कि धर्माचार्य लोग धर्म की गूढ़ बातों को अपने तक सीमित रख कर लोगों में एक रहस्य की स्थिति पैदा करके रखते हैं। वह धर्म की बारीकियों को सबको बताने का प्रयत्न नहीं करते।Explanation:PLEASE MARK as the BRAINLIEST ✔ |
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