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गधा पेडू पंडित इन शब्द के आधार पर हास्यकथा लिखिए

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यह एक पेटू पंडित की हास्य कहानी है। एक गांव में जानकीनाथ नाम का एक पंडित रहता था। वह पंडित गांव में सभी के यहां पूजा पाठ और कथा किया करता था। वह पंडित खाने का बहुत शौकीन था, जिनके घर वह जाता था वहां पर खूब खाता था और अपने घर के लिए भी वह खाना बांधकर दो-तीन दिन का खाना ले आता था। गांव के ज्यादातर लोग उस पेटू पंडित से बहुत परेशान थे। क्योंकि गाँव के सब लोग इतना खाना उसे नहीं दे पाते थे जितना की वह खाने के लिए मांगता था। उसी गांव में गोपाल नाम का एक आदमी रहता था। वह आदमी बहुत ही चतुर और बुद्धिमान था। एक दिन उसने सभी गांव वालों को बुलाकर उनके सामने पेटु पंडित की बात उठाई और कहा कि इस पंडित की आदत से सब परेशान हैं। मेंने इस समस्या के समाधान के लिए एक उपाय सोचा है, लेकिन जो मेंने सोचा है ऐसा करने से पहले मै आप सब लोगो की सहमति चाहता हूँ। और यह जानना चाहता हूँ की मैं कुछ गलत तो नहीं कर रहा। ऐसा कहा कर गोपाल ने गाँव वालो को अपनी योजना सुनाई। सभी गाँव वालों ने इस उपाय के लिए सहमति दे दी, क्योंकि गाँव के सभी लोग उस पेटु पंडित के व्यवहार से परेशान थे। गाँव वाले जल्द से जल्द इस समस्या से छुटकारा चाहते थे इसलिए उन्होने गोपाल से इस योजना को जल्द ही करने को कहा। गोपाल ने गाँव वालो के उत्साह और सहमति को देखकर काही की, मैं इसे कल ही अपने घर पर बुलाता हूं और इस उपाय को साकार करता हूँ। गोपाल ने उस पेटू पंडित को अपने घर पर कथा करने के लिए बुलाया। गोपाल के घर खाने का न्योता पाने के बाद इसकी खुशी मे उस दिन पंडित जी ने शाम को खाना ही नहीं खाया। क्योंकि उसने सोचा की कल तो उसे गोपाल के घर जाना था और वहां पर भरपेट खाना था। उसने सोच की अगर आज खाना खा लूँगा तो शायद कल पेटभर के नहीं खा पाऊँगा। इसमे तो मेरा घाटा है, ऐसा सोचकर पंडित जी बिना खाना खाये ही सो गये। गोपाल ने भी घर पहूँचकर अपनी पत्नी से कहा कि चार पांच लोगों का खाना बनाना क्योंकि कल पंडितजी घर पर कथा करने आ रहे हैं। उसकी पत्नी ने अगले दिन सबके के लिए बहुत अच्छे-अच्छे पकवान और मीठा बनाया। जब पंडितजी गोपाल के घर कथा करने पहुंचे तो दरवाजे के अंदर घुसते ही उन्हे पकवानो की इतनी बढ़िया सुगंध आई की उनका मन ही खुश हो गया। खाने की खुशबू सूंघकर अब पंडित जी भूख और भी बड़ गयी थी। जब पंडितजी कथा करने बैठे तब भी उनका सारा ध्यान पकवानो की खुशबू पर ही था। वो बार बार सोच रहे थे जल्दी से कथा खत्म करू और कुछ स्वादिष्ट खाने को मिले। जैसे तैसे करके पंडितजी ने कथा समाप्त की और गोपाल ने उन्हे खाने के लिए बैठने को कहा। गोपाल के कहते ही पंडितजी तुरंत खाने के लिए बैठ गए और खाना आने की प्रतीक्षा करने लगे। गोपाल ने अपनी पत्नी को खाना परोसने के लिए कहा। गोपाल की बात सुनते ही उसकी पत्नी ने तुरंत ही पंडित के सामने खाना परोस दिया। उस स्वादिष्ट खाने को देखकर पंडितजी के मुंह में पानी आ गया। खाना परोसते ही उसने फटाफट दो-तीन दिन का खाना खा लिया। खाना खाने के बाद पंडित अपने घर के लिए तीन चार दिन का खाना गोपाल से बँधवा लिया ताकि उसके घरवाले उन स्वादिष्ट व्यंजनो का आनंद ले सके। इसके बाद पंडित अपने घर पर चला गया लेकिन अपने घर जाकर ना तो उससे लेटा गया ना ही बैठा गया। उसे अपने पेट में ऐसे लग रहा था की जैसे पता नहीं क्या भर गया हो। अब वह पंडित डॉक्टर के पास गया, डॉक्टर उसे दवाई दी और कहा की अब तुम अपने घर पर जाकर आराम करो। पंडित ने कहा की, डॉक्टर साहब मुझे किसी चीज से परहेज तो नहीं करना है, यदि करनी हे तो बता दीजिये। तब उस डॉक्टर ने पंडित से कहा की, हां एक बात का जरूर ध्यान रखना, अब तुम शंख ज्यादा तेज मत बजाना नहीं तो फिर तुम पूजा करने के लायक भी नहीं रहोगे। यह सुनकर पंडितजी चित हो गए और सीके बाद उन्होने अब जीवन मे ज्यादा भोजन न करने का प्राण ले लिया। अब गाँव वाले भी बहुत खुश थे की, चलो अब इस समस्या से छुटकारा मिला। अब अब हमे कथा कराने ले लिए भोजन पर ज्यादा खर्च नहीं करना पड़ेगा। गाँव के सभी लोगो ने गोपाल की बुद्धिमानी की भी बहुत प्रशंसा की, गोपाल अब गाँव का एक बहुत ही सम्मानित व्यक्ति बन गया था। आपको यह कहानी कैसी लगी हमे जरूर बताये। और अगर पसंद आई है इसे शेयर जरूर करें। हम इस वेबसाइट पर नई-नई कहानियाँ डालते रहते हैं इसलिए इस वेबसाइट का शॉर्टकट आइकॉन अपने कंप्यूटर या मोबाइल पर बना लें, धन्यवाद।Explanation:THANK you



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