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गाँव के पुराने घर में बैठे लेखक कैसी व्यग्रता अनुभव करते हैं?

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गांव के पुराने घर में बैठे लेखक का मन अनेक पुरानी स्मृतियों से घिर जाता है। उस घर के दालान में ही उसने वर्णमाला सीखी थी और उच्च शिक्षा के ग्रंथ पढ़े थे। लेखक आंगन में खाट बिछाकर लेट जाते हैं। आज भी वहाँ नोंद थी और खटे थे। लेखक को लगता है जैसे पहले वहाँ बाँधे जानेवाले पशु रंभा रहे हो। लेखक का ध्यान उस खपरैल पर पड़ जाता है जहाँ चौमासों में वे इसका संगीत सनते थे। उन्हें वह तोरण याद आता है, जिसके नीचे उनकी बहनों के विवाह-मंडप सजे थे। उन्हें लगता है जैसे घर की दीवारें उनसे कह रही हों कि इतने दिन बाद तो आए हो और अब दूसरों को बेचकर चले जाना चाहते हो। इस प्रकार गांव के पुराने घर में बैठे हुए लेखक गहरी व्यग्रता अनुभव करते हैं।



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