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et S जा VIR TR eपत्ता नही है। i RS ol etसुरक्षा अधिनियम. के अन्तर्गत सूचना प्राप्त क़रने के अधिकारों के अर्थ का तीन{मुक्त उदाहरणों सें विश्लेषण करें।अधवा दि3 . e IS O

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उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 ने व्यकितगत तथा किसी खास व्यकित विशेष के परिप्रेक्ष्य में उपभोक्ता के बारे में एक विशेष अवधारणा का स्पष्टीकरण करता है। इस अधिनियम के धारा 2(1)(घ) के अनुसार, उपभोक्ता वह व्यकित है जो वस्तु या सेवा को अपने लिए निर्धारित फायदे या उपभोग के लिए खरीदता है या किराए पर लेता है या प्राप्त करता है जिसका मूल्य या तो अदा कर दिया गया हो या अदा करने का वचन दिया हो या आंशिक भुगतान या किसी अन्य पद्धति के तहत भुगतान किया गया हो। यह अधिनियम उन लोगों को स्पष्टत: उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं रखता है जो वस्तु या सेवाओं की प्रापित किसी वाणिजियक उíेश्य के लिए करते हैं। 'वाणिजियक उíेश्य के तहत उसे भी शामिल नहीं किया गया है, यदि वह व्यकित कोर्इ वस्तु खरीदे और स्वरोजगार द्वारा जीविकोपार्जन हेतु उसकी सेवा खुद ले। उल्लेखनीय है कि भारत की जनसंख्या का एक बड़ा भाग छोटे-छोटे दुकानों जैसे खुदरा विक्रेता, विनिर्माण इकार्इ आदि द्वारा स्वरोजगार के तहत जीविकोपार्जन करते हैं इसके लिए वे बड़े-बड़े व्यापारियों या उत्पादकों से वस्तु या सेवाएं खरीदते हैं। लेकिन उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत इस तरह के व्यवसाय को शामिल नही करने से बड़ी संख्या में लोगों को बाजार के सिद्धांतहीन एवं लालची बड़े-बड़े व्यवसायियों के सामने इन्हें लाचाार बना देते हैं और यह इस अधिनियम के सुचारू रूप से लागू होने के उíेश्य में बाधा उत्पन्न करता है।

बीसवीं शताब्दी में पहली बार महात्मा गांधी का ध्यान उपभोक्ता अधिकारों की ओर गया जिनका यह मानना था कि सभी व्यवसाय उपभोक्ता की संतुषिट के लिए होते हैं। कुछ समय पश्चात उपभोक्ता अधिकारों पर चर्चा संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार संबंधी विषयों पर भी हुआ। उपभोक्ता अधिकारों पर पहला वक्तव्य अमेरिका के राष्ट्रपति जान एफ. कैनेडी के द्वारा दिया गया। इन्होंने 15 मार्च 1962 को कांग्रेस को संबोधित करते हुए मूलभूत उपभोक्ता अधिकारों को परिभाषित करते हुए उन्हें मान्यता दी। तत्पश्चात संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार के घोषणा पत्र में सुरक्षा का अधिकार, सूचना पाने का अधिकार, चुनाव या पसंद का अधिकार एवं मानवाधिकार के अन्तर्गत सुनवार्इ या अपील का अधिकार आदि को शामिल किया गया। 15 मार्च को प्रत्येक वर्ष विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस के रूप में मनाये जाने की घोषणा की गर्इ।

उपभोक्ता संघों के अन्तर्राष्ट्रीय संगठन के गठन से उपभोक्ता अधिकारों के लिए चल रहे आंदोलनों को एक नया आयाम मिला। देश के हर क्षेत्र में उपभोक्ता अधिकारों को कार्यानिवत करने एवं लोकप्रिय बनाने के लिए भारत में भी भारतीय उपभोक्ता संगठनों के संघ की स्थापना हुर्इ। उपभोक्ता अधिकारों की सूची में और कर्इ नये अधिकार शामिल हुए। उपभोक्ता अधिकारों की रक्षा के लिए एक नयी प्रणाली के गठन की मांग उठी।

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत उपभोक्ता अधिकार(Rights of Consumer under the Consumer Protethion Act, 1986)

विभिन्न संगठनों द्वारा सुझाए गए उपभोक्ता के अधिकारों को तब तक महत्ता नहीं मिलती है जब तक उसे कानूनी रूप से नहीं दिया जाता। उपभोक्ता के अधिकारों को सुचारू रूप से लागू करने और उन्हें कानूनी रूप प्रदान करने के लिए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 निम्नलिखित उपभोक्ता अधिकारों का वर्णन करता है।

घातक वस्तुओं के विरूद्ध सुरक्षा का अधिकार -उपभोक्ता का प्रथम अधिकार सुरक्षा का अधिकार है। उसे ऐसी वस्तुओं एवं सेवाओं से सुरक्षा प्राप्त करने का अधिकार है जिनसे उसके शरीर एवं संपत्ति को हानि पहुंचती हो। इसलिए व्यकितयों की सुरक्षा एवं स्वास्थ्य को मíेनजर व्यापारी ऐसे किसी भी वस्तु को, जो उन्हें हानि पहुंचाए, प्रचलन में न लाने का पूर्णत: उत्तरदायी होगा।

सूचना पाने का अधिकार -सूचना के अधिकार, 2005 के लागू होने से पहले ही उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986, के तहत उपभोक्ताओं को वस्तुओं या सेवाओं के गुण, मात्रा, क्षमता, शुद्धता, मानक एवं कीमत के बारे में सूचना पाने का अधिकार था जिससे वस्तु विक्रेता या सेवा देने वाले के द्वारा गलत व्यवहार से उपभोक्ता की सुरक्षा हो सके। इसलिए उपरलिखित मामलों के बारे में ग्राहकों को व्यापारियों द्वारा किसी भी हिस्से में गलत खबर देने पर उपभोक्ता विवाद निवारण मंच के बनने से पहले भी न्यायालय द्वारा न्याय पाने का अधिकार था।

चुनाव या पसंद का अधिकार -यह अधिनियम बाजार और बाजारी सेवा के ऐसे संगठन की आवश्यकता पर बल देता है जो इस बात को सुनिशिचत करे कि डीलर ऐसी वस्तु या सेवा प्रदान करे जो उपभोक्ताओं के हित में हो। उपभोक्ता अपने इस अधिकार के अन्तर्गत विभिन्न निर्माताओं द्वारा निर्मित विभिन्न ब्रांड, किस्म, गुण, रूप, रंग तथा मूल्य की वस्तुओं में से किसी भी वस्तु का चुनाव करने को स्वतंत्र होगा।

सुनवार्इ या अपील का अधिकार -उपभोक्ता को अपने हितों को प्रभावित करने वाली सभी बातों को उपयुक्त मंच के समक्ष प्रस्तुत करने का अधिकार है। वे अपने इस अधिकार का उपयोग करके व्यवसायी एवं सरकार को अपने हितों के अनुरूप निर्णय लेने तथा नीतियां बनाने के लिए बाध्य कर सकते हैं। सुनवार्इ का अधिकार ही वह अधिकार है, जिसके द्वारा वह अपनी शिकायत को व्यक्त कर सकता है तथा अपने अन्य उपभोक्ता अधिकारों की रक्षा कर सकता है।

उपचार का अधिकार -यह अधिकार उपभोक्ता को यह आश्वासन प्रदान करता है कि क्रय की गर्इ वस्तु या सेवा उचित एवं संतोषजनक ढंग से उपयोग में नहीं लायी जा सकेगी तो उसे उसकी उचित क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकार होगा।

उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार -उपभोक्ता को उन सब बातों की शिक्षा या जानकारी प्राप्त करने का अधिकार है जो उपभोक्ता के लिए आवश्यक होता है। उपभोक्ता को उनकी आवश्यकता के अनुसार उत्पाद या सेवा के चयन में दी गर्इ सीमित जानकारी के कारण कंपनियों द्वारा जाने या अनजाने में वे प्राय: ठगे जाते हैं। इस सिथति में उपभोक्ता को जानकारी प्राप्त करने का पूरा अधिकार होता है। उपभोक्ता को उसे सिथति में शिक्षा या जानकारी पाने का पूरा अधिकार है जिसमें उसे लगता है कि उसके साथ नाइंसाफी की गर्इ है। उसके दावे के लिए उपचारों के लिए एक उपयुक्त संस्थागत व्यवस्था होना चाहिए। शिक्षा उपभोक्ता की जागरूकता की आधारभूत आवश्यकता है, जबकि सूचना किसी क्रय की जाने वाली वस्तु या सेवा के संबंध में जानकारी है। उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की सफलता की कुंजी है।

उपभोक्ता के संवैधानिक अधिकार -उपभोक्ता मूलत: देश का एक नागरिक होता है। भारत का संविधान भी अपने मौलिक अधिकारों तथा नीति निर्देशक तत्वों के प्रावधानों के अंतर्गत देश के लोगों की व्यापक भलार्इ के लिए काम करता है, उसी प्रकार इस भाग के कुछ प्रावधान उपभोक्ता के रूप में नागरिकों के वस्तु या सेवाओं के मामले से भी जुड़े हुए हैं। इससे संबंधित अनुच्छेद हैं - भाग प्प्प् के अनुच्छेद 21 तथा भाग प्ट के अंतर्गत 51ए(बी) एवं 51ए(जी) विशेष रूप से उल्लेखनीय है।संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत व्यकितयों को प्राप्त जीवन संरक्षण तथा व्यकितगत स्वतंत्रता का अधिकार के द्वारा दिए गए महत्वपूर्ण मौलिक अधिकार से देश के नागरिकों के साथ-साथ उपभोक्ताओं के अधिकारों की भी रक्षा होती है। व्यकितगत स्वतंत्रता या जीवन के अधिकार को सीमित करने के विरूद्ध रक्षोपाय के इस गुण के अंतर्गत देश के नागरिकों को स्वत: उनसे सुरक्षा पाने का अधिकार प्राप्त हो जाता है जो वस्तु या सेवाओं के उपभोग के कारण उनके जीवन या व्यकितगत स्वतंत्रता पर खतरा उत्पन्न करे। नागरिकों के इन अधिकारों की सुरक्षा हेतु सरकार कंपनियों तथा व्यवसायों को नियमित करने के लिए आवश्यक शकित का इस्तेमाल करती है।

संविधान के प्रावधानों से उपभोक्ता के लिए अन्य अधिकारों के अंतर्गत स्वस्थ पर्यावरण का अधिकार है जो लोगों के स्वस्थ, खुशनुमा एवं संतुष्ट जीवन को सुनिशिचत करते हैं। इस दिशा में मूलभूत कानूनों की व्याख्या सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालय उधोगों या अन्य विकासात्मक क्रियाकलापों से पर्यावरण प्रदूषित होने जैसे मामलों से संबंधित विवादों में की है। उदाहरणत: टी दामोदर राव बनाम नगर निगम, हैदराबाद (ए आइ आर 1987 ए पी 171) के केस में आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने कहा कि धीमे जहर के फैलने से प्रभावित हुए पर्यावरण द्वारा वातावरण दूषित व नष्ट होता है जिसे अनुच्छेद 21 के अंतर्गत प्राप्त अधिकारों का उल्लंघन माना जाएगा। इससे स्वस्थ पर्यावरण का अधिकार एक प्रमुख मौलिक अधिकार के रूप में उभरा जिसके बाद इस मुíे पर कर्इ बार जागरूक व्यकितयों एवं संगठनों द्वारा लोक हित को ध्यान में रखते हुए इस तरफ न्यायालयों का ध्यानाकर्षण कराया गया है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिया गया वह फैसला जिसमें कहा गया कि राष्ट्रीय राजधानी के लोगों को वायु प्रदूषण के बढ़ते खतरों से बचाने हेतु दिल्ली के सभी सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था में दावित प्राकृतिक गैस (सी.एन.जी) का अनिवार्य रूप से इस्तेमाल हो, स्वस्थ पर्यावरण के अधिकार का एक महत्वपूर्ण उदाहरण हैं।



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