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बुद्धि के एक खण्डीय सिद्धान्त तथा दो खण्डों के सिद्धान्त का सामान्य परिचय दीजिए।याबुद्धि के द्वि-कारक सिद्धान्त की संक्षेप में व्याख्या कीजिए।याबुद्धि के द्वि-खण्ड (तत्त्व) सिद्धान्त के बारे में लिखिए।

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1.एक-खण्डीय सिद्धान्त :
एक-खण्डीय सिद्धान्त के प्रमुख प्रतिपादक, बिने (Binet), टरमन (Turman) तथा स्टर्न (Stern) हैं। इनके अनुसार बुद्धि एक अखण्ड और अविभाज्य है। हमारी विभिन्न मानसिक योग्यताएँ एक इकाई के रूप में कार्य करती हैं, परन्तु यह सिद्धान्त अब अमान्य हो चुका है।
2. दो खण्डों का सिद्धान्त :
इस सिद्धान्त के प्रतिपादक स्पीयरमैन (Spearman) हैं, उनके अनुसार बुद्धि के दो तत्त्व हैं – सामान्य योग्यता और विशिष्ट योग्यता। स्पीयरमैन सामान्य योग्यता को विशिष्ट योग्यता से अधिक महत्त्वपूर्ण मानता है। उसके अनुसार इसकी निम्नलिखित विशेषताएँ हैं।

⦁    सामान्य योग्यता जन्मजात होती है।
⦁    सामान्य योग्यता एक मानसिक शक्ति है।
⦁    इसका उपयोग मानसिक कार्यों में होता है।
⦁    सामान्य योग्यता प्रत्येक व्यक्ति में भिन्न मात्रा में पायी जाती है।
⦁    सामान्य योग्यता किस व्यक्ति में कितनी है, इसका पता अन्तर्दृष्टि (Insight) द्वारा किये जाने वाले कार्यों में किया जा सकता है।
⦁    सामान्य योग्यता का तत्त्व शक्ति में सर्वदा एकसमान है।
⦁    जिन व्यक्तियों में जितनी सामान्य योग्यता पायी जाती है, उतना ही वह व्यक्ति सफल माना जाता

विशिष्ट योग्यता का सम्बन्ध व्यक्ति के विशिष्ट कार्यों से होता है। विशिष्ट योग्यता की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं।
⦁    विशिष्ट योग्यता भी व्यक्तियों में भिन्न-भिन्न मात्रा में पायी जाती है।
⦁    विशिष्ट योग्यता को प्रयास द्वारा अर्जित किया जा सकता है।
⦁    विशिष्ट योग्यता परस्पर एक-दूसरे से भिन्न होती है।
⦁    विशिष्ट योग्यताएँ अनेक होती हैं।
⦁    जिस व्यक्ति में जिस विशेष योग्यता की प्रधानता होती है, वह उसी में निपुणता प्राप्त करता है।



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