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भारत के विदेश व्यापार की दिशा में आये हुए परिवर्तनों की विस्तारपूर्वक चर्चा कीजिए ।

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विदेश व्यापार की दिशा अर्थात् किसी भी देश का विश्व के विविध प्रदेशों (देशों) के साथ व्यापार के लिए सम्बन्ध । अलग-अलग दिशा के प्रदेशों के साथ व्यापार करने के लिए किसी भी देश के पास निम्नलिखित बातें होनी चाहिए :

  1. विविध प्रकार का उत्पादन करने की शक्ति होनी चाहिए ।
  2. अनेक देशों के साथ अच्छे राजनैतिक सम्बन्ध होने चाहिए ।
  3. अनेक प्रकार के राजनैतिक प्रयत्न करने की तैयारी होनी चाहिए ।
  4. विक्रय-व्यवस्था और व्यापार-व्यवस्थापन के लिए कौशल्य तथा टेक्नोलोजी होनी चाहिए ।
  5. अधिक प्रमाण में निर्यातजन्य उत्पादन होना चाहिए ।

भारत के विदेश व्यापार की दिशा :

  1. स्वतंत्रता के बाद भारत का अधिकतर व्यापार इंग्लैण्ड के साथ होता था क्योंकि इंग्लैण्ड के साथ स्वतंत्रता पूर्व से व्यापार स्थापित था ।
  2. 1960-’61 में भारत की कुल आयात में इंग्लैण्ड का हिस्सा 19% था जो 2007 में घटकर 2% से भी कम रह गया ।
  3. स्वतंत्रता के बाद भारत में अमेरिका से आयात बढ़ा था । 1960-’61 में वस्तुओं और सेवाओं का कुल आयात USA से 29% था जो 2007 के बाद घटकर 8% से भी कम रह गया है ।
  4. देश में औद्योगिकीकरण और विकास होने से खनिज तेल की आयात बढ़ी । इसलिए OPEC से आयात का प्रमाण बढ़ा है ।
  5. रशिया के साथ मैत्रिक सम्बन्ध होने आयात का प्रमाण अधिक था परंतु 1980 के बाद रशिया में कटोकटी होने से घटा ।
  6. परम्परागत हिस्सेदार देशों से व्यापार घटा परंतु विकासशील देश के साथ व्यापार बढ़ा है ।
  7. 1960-’61 में एशिया, मध्य एशिया और अफ्रीका के विकासशील देशो से कुल आयात 11.8 प्रतिशत थी जो 2007-’08 में 32%
    जितनी हो गयी । तथा 2014-’15 में 59% हो गयी है ।
  8. 1960-’61 में इंग्लैण्ड में भारत मेंम 26.8% वस्तुएँ निर्यात होती थी जो घटकर 2007- ’08 में 4% रह गयी है ।
  9. 1960-’61 में अमेरिका में 16% निर्यात होता था जो घटकर 2007-’08 में 12.7% रह गया ।
  10. इसी समय दरम्यान रशिया में निर्यात 4.5% से घटकर 0.6% रह गयी ।
  11. OPEC के देशों में अपनी निर्यात 1960-’61 में 4.1% थी जो बढ़कर 2007-’08 में 16% से अधिक हो गयी ।
  12. इसी समय दरम्यान विकासशील देशों में वस्तुओं का निर्यात 14.8% था जो बढ़कर 42.6% हो गया ।
  13. 2014-’15 में एशिया के देशों में अपनी वस्तुओं का निर्यात 50% था ।

इस प्रकार अलग-अलग देशों के साथ और दिशा का व्यापार विकसित करने में भारत ने सफलता प्राप्त करने का सफल प्रयत्न किया है ।



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