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भारत का विभाजन किन परिस्थितियों में हुआ? वर्णन कीजिए।अथवा भारत विभाजन के प्रमुख कारणों का विस्तारपूर्वक उल्लेख कीजिए।

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भारत की स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय परिस्थितियों से विवश होकर ही कांग्रेस के नेताओं ने भारत-विभाजन के साथ स्वतन्त्रता प्राप्त करना स्वीकार किया। महात्मा गांधी ने तो यहाँ तक कह दिया था कि “पाकिस्तान का निर्माण उनकी लाश पर होगा।” फिर भी भारत का विभाजन होकर ही रहा। भारत-विभाजन के लिए उत्तरदायी परिस्थितियाँ व कारण निम्नांकित रूप से वर्णित हैं-

1. अंग्रेजी सरकार की ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति–ब्रिटिश शासकों ने हिन्दू-मुसलमानों में निरन्तर फूट डालने हेतु ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति को अपनाया। वे निरन्तर हिन्दू-मुस्लिम सम्बन्धों में कटुता लाने तथा उन्हें परस्पर विरोधी बनाने का प्रयास करते रहे। डॉ० राजेन्द्र प्रसाद के अनुसार, “पाकिस्तान के निर्माता कवि इकबाल तथा मि० जिन्ना नहीं? बल्कि लॉर्ड मिण्टो थे।” कांग्रेस के नेतृत्व में हुए स्वाधीनता आन्दोलन में अधिकांश हिन्दुओं ने भाग लिया था इसलिए ब्रिटिश शासन ने हिन्दुओं और कांग्रेस से अपना बदला लेने के लिए मुस्लिम साम्प्रदायिकता को प्रोत्साहन दिया।
2. लीग के प्रति कांग्रेस की तुष्टीकरण की नीति–कांग्रेस ने लीग के प्रति तुष्टीकरण की नीति अपनाई। सन् 1916 में लखनऊ पैक्ट में साम्प्रदायिक निर्वाचन प्रणाली को स्वीकार किया गया। सिन्ध को बम्बई से पृथक् किया गया, सी० आर० फार्मले में पाकिस्तान की माँग को कछ सीमा तक स्वीकार किया गया।
3. हिन्दू-मुसलमानों में परस्पर अविश्वास की भावना-हिन्दू तथा मुसलमान दोनों ही जातियों के लोग परस्पर अविश्वास की भावना रखते थे। सल्तनत काल व मुगलकाल में अनेक मुस्लिम शासकों ने हिन्दुओं पर अत्यधिक अत्याचार किए। इसलिए इन दोनों जातियों में परस्पर द्वेष की भावना थी। इसके अलावा हिन्दुओं का मुस्लिमों के प्रति सामाजिक बहिष्कार सम्बन्धी व्यवहार भी अच्छा नहीं था। इसका परिणाम यह हुआ कि मुसलमानों को ईसाइयों का व्यवहार हिन्दुओं की तुलना में अधिक अच्छा लगा और वे ईसाइयों के निकट होते चले गए।
4. जिन्ना की हठधर्मिता—जिन्ना द्वि-राष्ट्र सिद्धान्त के समर्थक थे। सन् 1940 के बाद संवैधानिक गतिरोध को दूर करने हेतु अनेक योजनाएँ प्रस्तुत की गईं परन्तु जिन्ना की पाकिस्तान निर्माण सम्बन्धी हठधर्मिता . के कारण कोई भी योजना स्वीकार नहीं की जा सकी और अन्ततः भारत और पाकिस्तान का विभाजन होकर रहा।
5. साम्प्रदायिक दंगे-जब मुस्लिम लीग को संवैधानिक साधनों से सफलता प्राप्त नहीं हुई तो उसने मुस्लिमों को साम्प्रदायिक उपद्रव करने हेतु बढ़ावा दिया तथा लीग की सीधी कार्रवाई की योजना में नोआखली और त्रिपुरा में मुसलमानों द्वारा अनेक दंगे करवाए गए। मौलाना अबुल कलाम आजाद के अनुसार, “16 अगस्त का दिन भारत के इतिहास में काला दिन है क्योंकि इस दिन सामूहिक हिंसा ने कलकत्ता जैसी महानगरी को हत्या, रक्तपात और बलात्कारों की बाढ़ में डुबो दिया।”
6. सत्ता के प्रति आकर्षण-भारत-विभाजन का एक कारण कांग्रेस और लीग के अनेक नेताओं का सत्ता के प्रति आकर्षण भी था। स्वतन्त्रता संघर्ष के लिए नेताओं ने अत्यन्त कष्ट सहे थे तथा उनमें और अधिक संघर्ष करने की शक्ति नहीं रह गयी थी। यदि वे माउण्टबेटन योजना को स्वीकार नहीं करते तो न जाने कितने वर्षों के संघर्ष के बाद उन्हें सत्ता का सुख भोगने का अवसर प्राप्त होता। माइकेल ब्रेचर के शब्दों में, “कांग्रेसी नेताओं . के सम्मुख सत्ता के प्रति आकर्षण भी था….. और विजय की घड़ी में वे इससे अलग होने के इच्छुक नहीं थे।”
7. सत्ता हस्तान्तरण के सम्बन्ध में ब्रिटिश दृष्टिकोण-भारत-विभाजन के सम्बन्ध में ब्रिटिश दृष्टिकोण यह था कि इससे भारत एक निर्बल देश हो जाएगा तथा भारत व पाकिस्तान हमेशा एक-दूसरे के विरुद्ध लड़ते रहेंगे। इस प्रकार ब्रिटेन की यह इच्छा आज भी काफी सीमा तक पूर्ण होती दिखाई दे रही है।

इस तरह उपर्युक्त परिस्थितियों के कारण भारत का विभाजन हो गया। महात्मा गांधी के अनुसार, “32 वर्षों के सत्याग्रह का यह एक लज्जाजनक परिणाम था।”



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